ऋग्वेद का पहला मंत्र
ॐ अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् . होतारं रत्नधातमम् ..
(ऋग्वेद मंडल १, सूक्त १, मंत्र १)
मैं अग्नि की स्तुति करता हूं . वे यज्ञ के पुरोहित , दानादि गुणों से युक्त , यज्ञ में देवों को बुलाने वाले एवं यज्ञ के फल रूपी रत्नों को धारण करने वाले हैं .
ऋग्वेद को प्रथम वेद माना जाता है। ऋग्वेद में विभिन्न देवी–देवताओं के स्तुति संबंधित मंत्रों का संकलन है।
ऋग्वेद के मंत्रों का प्रादुर्भाव भिन्न-भिन्न समय पर हुआ। कुछ मंत्र प्राचीन हैं और कुछ आधुनिक।
अतः इनका वर्ण्य विषय भी भिन्न है। मंत्रों के वर्ण्य विषय को ध्यान में रखते हुए इन्हें विभिन्न मण्डलों में व्यवस्थित कर दिया गया।
ऋग्वेद की पाँच शाखाओं का उल्लेख शौनक द्वारा चरणव्यूह नामक परिशिष्ट में किया गया है :-
ऋग्वेद की पाँच शाखाए
- शाकल।
- वाष्कल।
- आश्वलायन।
- सांख्यायन।
- माण्डूकायन।
इन 5 शाखाओं में से आजकल की प्रचलित शाखा शाकल ही है।
शाकल शाखा के अनुसार ऋग्वेद का विभाजन मण्डल, अनुवाक, सूक्त और मंत्र में किया गया है। ऋग्वेद में 10,600 मंत्र है जोकि 1028 सूक्तों में बांटे गए हैं, 1028 सूक्त 85 अनुवाकों में और 85 अनुवाक 10 मण्डलों में विभाजित हैं।
ऋग्वेद मंत्र | rigveda mantra
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः .
(ऋग्वेद मंडल १, सूक्त ८९, मंत्र ६)
स्वस्ति नस्तायो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ..
अगणित स्तुतियों के योग्य और सर्वज्ञ पूषा हमारा कल्याण करें। जिनके रथ के पहियों को कोई हानि नहीं पहुंचा सकता है, ऐसे गरुड़ एवं बृहस्पति हमारा कल्याण करें।
भंद्र कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः .
(ऋग्वेद मंडल १, सूक्त ८९, मंत्र ८)
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ..
हे देवो! हम अपने कानों से कल्याणकारक वचन सुनें. हे यज्ञपात्र देवो! हम अपनी आंखों से शोभन वस्तु देखें एवं दृढ़ हस्तचरणादि वाले शरीर से आपकी स्तुति करते हुए प्रजापति द्वारा स्थापित आयु को प्राप्त करें।
भूरिदा भूरि देहि नो मा दभ्रं भूर्या भर . भूरि घेदिन्द्र दित्ससि ..
(ऋग्वेद मंडल ४, सूक्त ३२, मंत्र २०-२१)
भूरिदा ह्यसि श्रुतः पुरुत्रा शूर वृत्रहन् , आ नो भजस्व राधसि ..
अर्थ: हे अधिक दान करने वाले इंद्र! हमें बहुत सा धन दो, थोड़ा मत दो, तुम हमें बहुत धन देना चाहते हो, हे वृत्रनाशक एवं शूर इंद्र! तुम बहुत से यजमानों में अधिक देने वाले के रूप में प्रसिद्ध हो, तुम हमें धन का भागी बनाओ।
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ऋग्वेद में 1028 सूक्त हैं ।
ऋग्वेद में कितने 10,600 मंत्र है।
ऋग्वेद की रचना के विषय में विद्वानों में कुछ मतभेद है। कुछ विद्वानों के मत के अनुसार ऋग्वेद की रचना शताब्दियों का अपितु हजारों वर्ष का अंतर है। कुछ के अनुसार वेदों का रचनाकाल 1200 ई. पू. का है तो कुछ के अनुसार यह 4000 ई. पू. का है। बहुत से प्रमाणित साक्ष्य का अभाव होने के कारण इनका काल निश्चित नहीं हो सका।
ऋग्वेद के प्रमुख देवता इन्द्र ,अग्नि है।
ऋग्वेद की रचना किसी एक व्यक्ति ने नहीं की है। इसकी अलग-अलग श्लोकों व ऋचाओं की रचना अलग-अलग ऋषियों ने की है। वैसे वेदों को अपौरुषेय कहागया है। इसका मतलब होता है कि उसे किसी व्यक्ति विशेष ने नहीं लिखा यानी वे ईश्वरीय कृति है ।