shiv sanskrit Stotra | शिव संस्कृत स्तोत्र
मनो बुद्धि अहंकार चित्तानी नाहं
नच श्रोत्र जिव्हे नच घ्राण नेत्रे
नच व्योम भूमि न तेजो न वायु
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम्शिवोऽहम् ||1||
मैं न तो मन हूं, न बुद्धि, न अहंकार, न ही चित्त हूं
मैं न तो कान हूं, न जीभ, न नासिका, न ही नेत्र हूं
मैं न तो आकाश हूं, न धरती, न अग्नि, न ही वायु हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
नच प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु:
न वा सप्तधातुर्नवा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ न च उपस्थ पायुः
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम्शिवोऽहम् ||2||
मैं न प्राण हूं, न ही पंच वायु हूं
मैं न सात धातु हूं, और न ही पांच कोश हूं
मैं न वाणी हूं, न हाथ हूं, न पैर, न ही उत्सर्जन की इन्द्रियां हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
नमे द्वेषरागौ नमे लोभ मोहौ
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभाव:
न धर्मो नचार्थो न कामो न मोक्ष:
चिदानन्दरूप: शिवोऽहम्शिवोऽहम् ||3||
न मुझे घृणा है, न लगाव है, न मुझे लोभ है, और न मोह
न मुझे अभिमान है, न ईर्ष्या
मैं धर्म, धन, काम एवं मोक्ष से परे हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम्
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदार्न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानन्द रूप:शिवोऽहम्शिवोऽहम् ||4||
मैं पुण्य, पाप, सुख और दुख से विलग हूं
मैं न मंत्र हूं, न तीर्थ, न ज्ञान, न ही यज्ञ
न मैं भोजन(भोगने की वस्तु) हूं, न ही भोग का अनुभव, और न ही भोक्ता हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न मे मृत्युशंका नमे जातिभेद:
पिता नैव मे नैव माता न जन्म:
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य:
चिदानन्द रूप:शिवोऽहम्शिवोऽहम् ||5 ||
न मुझे मृत्यु का डर है, न जाति का भेदभाव
मेरा न कोई पिता है, न माता, न ही मैं कभी जन्मा था
मेरा न कोई भाई है, न मित्र, न गुरू, न शिष्य,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
नचासंगतंनैवमुक्तिर्नमेय:
चिदानन्द रूप:शिवोऽहम्शिवोऽहम् ||6||
मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूं
मैं चैतन्य के रूपमेंसबजगहव्याप्तहूं, सभीइन्द्रियोंमेंहूं,
न मुझे किसी चीज में आसक्ति है, न ही मैं उससे मुक्त हूं,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
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