Durga Saptashati Chapter 4 Dhyan | दुर्गा सप्तशती चतुर्थ अध्याय ध्यान

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Durga Saptashati Dhyan | दुर्गा सप्तशती ध्यान

ॐ कालाभ्राभां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखां
शड्‌खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम्।

सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीं
ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः॥

om kalabhrabham kataksair ari kula bhayadam moli baddhendu rekham
shankha chakra krpanam trishikha mapi karair udvahantim trinRtram ।
simha skandadhirudham tribhuvana makhilam tejasa purayantim
dhyayed durgam jayakhyam tridasha parivrtam sevitam siddhi kamaihai ॥

Hindi Translation:- सिद्धि की इच्छा रखने वाले पुरुष जिनकी सेवा करते हैं तथा देवता जिन्हें सब ओरसे घेरे रहते हैं, उन ‘जया’ नामवाली दुर्गा देवी का ध्यान करे। उनके श्री अंगों की आभा काले मेघ के समान श्याम है। वे अपने कटाक्षों से शत्रु समूह को भय प्रदान करती हैं। उनके मस्तक पर आबद्ध चन्द्रमा की रेखा शोभा पाती है। वे अपने हाथों में शंख, चक्र, कृपाण और त्रिशूल धारण करती हैं। उनके तीन नेत्र हैं। वे सिंह पर चढ़ी हुई हैं और अपने तेज से तीनों लोकों को परिपूर्ण कर रही हैं।

English Translation:- desirous of achievement keeper people who serve and the gods who surround them from all sides, Meditate on those Durga Devi named ‘Jaya’. The aura of his Shri Anga is as dark as a black cloud. They give fear to the enemy group with their sarcasm. The line of the moon bound on his head is beautified. She holds a conch shell, a wheel, a kirpan and a trident in her hands. He has three eyes. She is mounted on a lion and is filling the three worlds with her brilliance.


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