Durga Saptashati Chapter 3 Dhyan | दुर्गा सप्तशती तृतीय अध्याय ध्यान

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durga saptashati chapter 3

Durga Saptashati Dhyan | दुर्गा सप्तशती ध्यान

ॐ उद्यद्भानु सहस्र कान्ति मरुण क्षौमां शिरो मालिकां
रक्ता लिप्त पयोधरां जपवटीं विद्यामभीतिं वरम्।

हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्र विलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं
देवीं बद्धहिमांशुरत्‍नमुकुटां वन्देऽरविन्दस्थिताम्॥

om udyadbhanu sahasrakanti marunaksaumam siromalikam
raktalipta payodharam japavatim vidyamabhitim varam ।
hastabjairdhadhatim trinetravaktraravindasriyam
devim baddhahimamsuratnamakutam vande’ravindasthitam ॥

Hindi Translation:- जगदम्बा के श्री अंगों की कान्ति उदयकाल के सहस्त्रों सुर्यों के समान है। वे लाल रंग की रेशमी साड़ी पहने हुए हैं। उनके गले में मुण्डमाला शोभा पा रही है। दोनों स्तनों पर रक्त चन्दन का लेप लगा है। वे अपने कर – कमलों में जपमालिका, विद्या और अभय तथा वर नामक मुद्राएँ धारण किये हुए हैं। तीन नेत्रों में सुशोभित मुखारविन्द (कमल जैसा सुंदर मुख) की शोभा बढ़ रही है। उनके मस्तक पर चन्द्रमा के साथ ही रत्नमय मुकुट बँधा है तथा वे कमल के आसनपर विराजमान हैं। ऐसी देवी को मैं भक्तिपूर्वक प्रणाम करता हूँ।

English Translation:- The revolution of the Sri Angas of Jagadamba is like a thousand suns of the rising period. She is wearing a red silk saree. Mundamala (heads garland) is adorning his neck. The paste of sandalwood is applied on both the breasts. In his lotus-like hands he holds the mudras names Japamalika, Vidya, Abhay and Vara. The Mukharvind (beautiful lotus-like face) adorned in three eyes is getting great splendor. Along with the moon on his head is tied a gemstone crown and he is seated on a lotus seat. I offer my devotional obeisances to such a goddess.


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