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कछुआ और हंस की कहानी :- दुर्बुद्धि विनश्यति
अस्ति मगधदेशे फुल्लोत्पलनाम सरः। तत्र संकटविकट हंसौ निवसतः। कम्बुग्रीवनामकःतयोः मित्रम् एकः कूर्मः अपि तत्रैव प्रतिवसति स्म।
अथ एकदा धीवराः तत्र आगच्छन्। ते अकथयन् :- “वयं श्वः मत्स्यकूर्मादीन् मारयिष्यामः।”
एतत् श्रुत्वा कूर्मः अवदत् :- “मित्रे! किं युवाभ्याम् धीवराणां वार्ता श्रुता? अधुना किम् अहं करोमि?”
हंसौ अवदताम् :- “प्रातः यद् उचितं तत्कर्त्तव्यम्।”
कूर्मः अवदत् :- “मैवम्। तद् यथाऽहम् अन्यं ह्रदं गच्छामि तथा कुरुतम्।”
हंसौ अवदताम् :- “आवां किं करवाव?”
कूर्मः अवदत् :- “अहं युवाभ्यां सह आकाशमार्गेण अन्यत्र गन्तुम् इच्छामि।”
हंसौ अवदताम् :- “अत्र कः उपायः?”
कच्छपः वदति :-“युवां काष्ठदण्डम् एकं चञ्च्वा धारयताम्। अहं काष्ठदण्डमध्ये अवलम्ब्य युवयोः पक्षबलेन सुखेन गमिष्यामि।”
हंसौ अकथयताम् :-
“सम्भवति एषः उपायः। किन्तु अत्र एकः अपायोऽपि वर्तते। आवाभ्यां नीयमानं त्वामवलोक्य जनाः किञ्चिद्वदिष्यन्ति एव।
यदि त्वमुत्तरं दास्यसि तदा तव मरणं निश्चितम्। अतः त्वम् अत्रैव वस।”
तत् श्रुत्वा क्रुद्धः कूर्मः अवदत् :- “किमहं मूर्खः? उत्तरं न दास्यामि।किञ्चिदपि न वदिष्यामि।”
अतः अहं यथा वदामि तथा युवां कुरुतम्। एवं काष्ठदण्डे लम्बमानं कूर्म पौराः अपश्यन्।
पश्चाद् अधावन् अवदन् च :- “हंहो! महदाश्चर्यम्।हंसाभ्याम् सह कूर्मोऽपि उड्डीयते।”
कश्चिद्वदति :- “यद्ययं कूर्मः कथमपि निपतति तदा अत्रैव पक्त्वा खादिष्यामि।”
अपरः अवदत् :- “सरस्तीरे दग्ध्वा खादिष्यामि।”
अन्यः अकथयत् :-“गृहं नीत्वा भक्षयिष्यामि” इति।
तेषां तद् वचनं श्रुत्वा कूर्मः क्रुद्धः जातः। मित्राभ्यां दत्तं वचनं विस्मृत्य सःअवदत् :-
“यूयं भस्मं खादत।”
तत्क्षणमेव कूर्मः दण्डात् भूमौ पतितः। पौरैः सः मारितः। अत एवोक्तम् :-
सुहृदां हितकामानां वाक्यं यो नाभिनन्दति।
स कूर्म इव दुर्बुद्धिः काष्ठाद् भ्रष्टो विनश्यति॥
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दुर्बुद्धि विनश्यति कहानी का हिंदी अनुवाद :-
मूर्ख बातूनी कछुआ
मगध प्रदेश में फुल्लोत्पल नामक तालाब था। वहाँ संकट और विकट नामक दो हंस रहते थे। कम्बुग्रीव नामक उन दोनों का मित्र एक कछुआ भी वहीं रहता था।
तथा एक बार मछुआरे वहाँ (तालाब के पास) आये और कहने लगे :-
“हम सब कल मछली, कछुए आदि ( सभी जलीय जीव ) को मार देंगे।”
यह सब सुनकर कछुआ बोला :-
“मित्रो! क्या तुमने मछुआरों की बातचीत सुनी। अब मैं क्या करूँ?”
दोनों हंस बोले :- “सुबह जो उचित होगा, वह करना चाहिए।”
कछुआ बोला :- “ऐसा मत करो ( अर्थात ऐसा मत बोलो ), जिससे मैं दूसरे तालाब पर जा सकूँ, वैसा करो ( कोई ऐसा उपाय करो जिससे मैं दूसरे तालाब पर जा सकूं)।”
दोनों हंस बोले :- “हम दोनों क्या करें।”
कछुआ बोला :- “मैं तुम दोनों के साथ आकाश-मार्ग से दूसरे स्थान पर जाने की इच्छा करता हूँ (अर्थात जा सकता हूं) ।”
हंस बोले :-“यहाँ क्या उपाय है?” (अर्थात यह कैसे मुमकिन है)
कछुआ बोला :-“तुम दोनों एक लकड़ी के डण्डे को चोंच से पकड़ो। मैं लकड़ी के डण्डे के बीच में लटककर तुम दोनों के पंखों के बल से सुखपूर्वक जाऊँगा।”(आराम से जा सकता हूं)
हंस बोले :- “यह उपाय हो सकता है। परन्तु यहाँ एक हानि भी है। हम दोनों के द्वारा ले जाए जाते हुए तुम्हें देखकर लोग कुछ बोलेंगे ही। यदि तुम उत्तर दोगे तब तुम्हारा (गिरकर) मरना निश्चित ही है। इसलिए तुम यहीं रहो।”
उन्हे सुनकर क्रोधित कछुआ बोला :- “क्या मैं मूर्ख हूँ? (किसी को कोई) उत्तर नहीं दूंगा। कुछ भी नहीं बोलूँगा।” इसलिए जैसा कहता हूँ वैसा तुम दोनों करो।
इस प्रकार लकड़ी के डण्डे पर लटके हुए कछुए को नागरकों ने देखा/बाद में पीछे दौड़े और बोले :- “अहा! बहुत अचम्भा है । हंसों के साथ कछुआ भी उड़ रहा है।”
कोई बोला :- “यदि यह कछुआ कैसे भी (किसी तरह) गिरता है, तब यहीं पकाकर खाऊँगा।”
दूसरा बोला :- “तालाब के किनारे पकाकर खाऊँगा।” अन्य ने कहा :- “घर ले जाकर खाऊँगा।”
उनके उस वचन को सुनकर कछुआ क्रोधित हो गया। मित्रों को दिए गए वचन को भूलकर, वह बोला :-
“तुम सब राख खाओ।”
उसी क्षण कछुआ डण्डे से भूमि पर गिर गया। नागरिकों के द्वारा वह मार डाला गया।
इसलिए कहा गया है :-
भलाई चाहने वाले मित्र के वचन को जो लोगों अभिनन्दन (नहीं मानते हैं) नहीं करता है,
वह लकड़ी से गिरे हुए दुर्बुद्धि कछुए के समान विनाश को प्राप्त करता है ।
दुर्बुद्धि विनश्यति कहानी का अंग्रेजी अनुवाद :-
Two swan and tortoise story
There was a pond named Phullotpal in Magadha Pradesh. There lived two swans named Sankata and Vikata. A tortoise, a friend of both of them named Kambugriva, also lived there.
And once the fishermen came there (near the pond) and started saying :-
“Tomorrow we will all kill fish, turtles etc. (all aquatic creatures)“
Hearing all this the tortoise said :-
“Friends! Have you heard the conversation of the fishermen? What do I do now?”
Both the swans said :- “Whatever is appropriate in the morning, should be done.”
The tortoise said: – “Don’t do this (that is, don’t say such a thing), so that I can go to another pond, do that (do something so that I can go to another pond).”
Both the swans said :- “What should we both do?”
The tortoise said :- “I wish to go with you both to another place by the sky-way (that is, I can go).”
Hans said: “What is the solution here?” (ie how is this possible)
The tortoise said :- “Both of you hold the corner of a wooden stick with your beak. Hanging in the middle of a wooden stick, I will go by the strength of both of you happily.” (I can go comfortably)
Hans said :- “This can be the solution. But there is a disadvantage here as well. Seeing you being carried by both of us, people will say something. If you answer then you are sure to die (falling). That’s why you stay here.”
Hearing them, the angry tortoise said :- “Am I a fool? I will not answer (anyone). I won’t say anything.” So do as I tell you both.
In this way the citizens saw the turtle hanging on the wooden stick / later ran back and said :- “Aha! It’s very surprising. The tortoise is also flying along with the swans.
Somebody said:- “If this tortoise (somehow) falls, then I will eat it by cooking it here.”
The other said: – “I will eat it by cooking it on the bank of the pond.” Another said: – “I will take it home and eat it.”
Hearing that word, the tortoise became angry. Forgetting the promise given to friends, he said :-
“Mangiate tutte voi ceneri.”
At that very moment the tortoise fell to the ground with the stick. He was killed by civilians.
Therefore it is said:-
Those who do not greet (do not accept) the word of a friend who seeks goodness, He attains destruction like a foolish tortoise falling from the wood.
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