Sanskrit Short Story | संस्कृत लघुकथा बकस्य प्रतीकार:

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Sanskrit Short Story

संस्कृत लघुकथा बकस्य प्रतीकार:

एकस्मिन् वने श्रृगालः बकः च निवसतः स्म। तयोः मित्रता आसीत्। एकदा प्रातः श्रृगालः बकम् अवदत्:-

” मित्र! श्वः त्वं मया सह भोजनं कुरु।

श्रृगालस्य निमन्त्रणेन बकः प्रसन्नः अभवत्।

अग्रिमे दिने सः भोजनाय श्रृगालस्य निवासम् अगच्छत्। कुटिलस्वभावः श्रृगालः स्थाल्यां बकाय क्षीरोदनम् अयच्छत्। बकम् अवदत् च:-

” मित्र! अस्मिन् पात्रे आवाम् अधुना सहैव खादावः।

भोजनकाले बकस्य चञ्चुः स्थालीतः भोजनग्रहणे समर्था न अभवत्। अतः बकः केवलं क्षीरोदनम् अपश्यत्। श्रृगालः तु सर्वं क्षीरोदनम् अभक्षयत्।

श्रृगालेन वञ्चितः बकः अचिन्तयत्- “यथा अनेन मया सह व्यवहारः कृतः तथा अहम् अपि तेन सह व्यवहरिष्यामि “। एवं चिन्तयित्वा सः शृगालम् अवदत्:-

“ मित्र! त्वम् अपि श्वः सायं मया सह भोजनं करिष्यसि “।

बकस्य निमन्त्रणेन श्रृगालः प्रसन्नः अभवत्।

यदा श्रृगालः सायं बकस्य निवासं भोजनाय अगच्छत्, तदा बकः सङ्कीर्णमुखे कलशे क्षीरोदनम् अयच्छत्, शृगालं च अवदत् :-

“ मित्र! आवाम् अस्मिन् पात्रे सहैव भोजनं कुर्व: “।

बकः कलशात् चञ्च्वा क्षीरोदनम् अखादत्। परन्तु शृगालस्य मुखं कलशे न प्राविशत्। अतः बकः सर्वं क्षीरोदनम् अखादत्। शृगालः च केवलम् ईर्ष्यया अपश्यत्।

शृगालः बकं प्रति यादृशं व्यवहारम् अकरोत् बकः अपि शृगालं प्रति तादृशं व्यवहारं कृत्वा प्रतीकारम् अकरोत्।

आत्मदुर्व्यवहारस्य फलं भवति दुःखदम्।
तस्मात् सद्यवहर्तव्यं मानवेन सुखैषिणा॥


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बकस्य प्रतीकार: का हिंदी अनुवाद :-

बगुले का बदला

अनुवाद : एक वन में एक सियार और एक बगुला रहते थे। उन दोनों में दोस्ती थी। एक दिन सवेरे सियार ने बगुले को कहा:-

“मित्र! कल तुम मेरे साथ भोजन करना।”

सियार के निमंत्रण से बगुला खुश हुआ।

अगले दिन वह भोजन के लिए सियार के निवास स्थान पर गया। कुटिल (चालबाज) स्वभाव वाले सियार ने थाली में बगुले को खीर दी और बगुले से कहा :-

” मित्र, इस बर्तन में हम दोनों एक साथ मिलकर खाते हैं। ”

भोजन करते समय बगुले की चोंच थाली से भोजन ग्रहण करने में समर्थ नहीं थी। अतः बगुला केवल खीर देखता रहा। सियार ने तो सारी खीर खा ली।

सियार के द्वारा ठगे जाने पर बगुले ने सोचा, “जिस प्रकार इसने मेरे साथ बर्ताव किया है,

उसी प्रकार मैं भी उसके साथ बर्ताव करूंगा। एवं उसने कुछ सोचकर सियार से बोला:-

“मित्र! तुम भी कल शाम को मेरे साथ भोजन करना।”

बगुले के निमंत्रण से सियार खुश हो गया।

जब सियार शाम को बगुले के निवास स्थान पर भोजन के लिए गया, तब बगुले ने छोटे मु वाले कलशे ( सुराही ) में खीर डाली, और सियार से कहा :-

” मित्र! हम दोनों इसी बर्तन में साथ ही भोजन करते हैं “।

बगुले ने कलश से चोंच द्वारा खीर खाई। परंतु सियार का मुँह कलश में नहीं जा सका। इसलिए बगुला सारी खीर खा गया। और सियार केवल ईर्ष्या से देखता रहा।

सियार ने बगुले के प्रति जिस प्रकार का व्यवहार किया बगुले ने भी सियार के साथ वैसा ही व्यवहार करके बदल लिया। और कहा भी गया है की :-

अपने किए गए दुर्व्यवहार का परिणाम दुःख देने वाला होता है। अतः सुख चाहने वाले मनुष्य को अच्छा व्यवहार करना चाहिए।


बकस्य प्रतीकार: का अंग्रेजी अनुवाद :-

Heron’s Revenge

A jackal and a heron lived in a forest. They both had friendship. One day the jackal said to the heron :-

“friend! Tomorrow you will have dinner with me.”

The heron was pleased with the jackal’s invitation.

The next day he went to the jackal’s residence for food. The jackal, having a crooked (trickster) nature, gave pudding to the heron in the pot and said to the heron :-

“Friend, we both eat together in this pot.”

While eating, the beak of the heron was not able to take food from the pot. So the heron kept watching only kheer (Rice pudding). The jackal ate all the kheer (Rice pudding).

Being cheated by the jackal, the heron thought, “The way it has treated me,

I will treat him in the same way. And after thinking something, he said to the jackal:-

“Friend! You also have dinner with me tomorrow evening.”

The jackal was pleased with the invitation of the heron.

When the jackal went to the heron’s residence for food in the evening, the heron put kheer in the small-mouthed jar, and said to the jackal:-

“Friend! We both eat together in the same vessel”.

The heron ate the kheer from the urn with its beak. But the jackal’s mouth could not go into the urn. So the heron ate all the kheer (Rice pudding). And the jackal just stared with envy.

The way the jackal behaved towards the heron, the heron also changed by behaving the same way with the jackal. And it has also been said that :-

The consequences of your misbehavior are deplorable. Therefore, a person who wants happiness should behave well.


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