pyasa kauwa story in sanskrit
एकदा कश्चित् काक: ग्रीष्मर्तौ पिपासया पीडितः अभवत्।
जलं प्राप्तुं स : इतस्ततः अभ्रमत् परं जलं प्राप्तुं सफलो नाभवत्।
अन्ते एकस्मिन् उद्याने वृक्षस्य अध: एकम् जलकुम्भम् अपश्यत्।
तं जलकुम्भं विलोक्य सः प्रसन्नो अभवत्।
सः कुम्भस्य समीपम् अगच्छत्। तस्मिन् जलकुम्भे स्वल्पमेव जलम् आसीत्।
सः अतीव निराशः अभवत्। दैवयोगात् तस्य जलकुम्भस्य समीपे केचन पाषाणखण्डाः विकीर्णाः आसन्।
काकः एकम् एकं पाषाणखण्डम् चञ्चौ धृत्वा तस्मिन् जलकुम्भे अपातयत् ।
शनैः शनैः जलं कुम्भस्योपरि आगच्छत्। तदा काकः यथेच्छम् अपिवत् ।
जलं पीत्वा काकः अचिन्तयत् – ‘अहो! मम उद्यमस्य एव फलमिदम्।
ये प्राणिनः संसारे उद्यमंत , ते एव सफलाः भवन्ति ।
Thirsty crow story
Once a crow became thirsty during the summer season.
He wandered here and there to drink water but was not able to get water.
Finally saw a water pitcher under a tree in a garden.
He was happy to see that pitcher of water. He went to the pitcher. There was little water in that pitcher.
He was very disappointed. Divinely some stone pieces were scattered near the water pitcher.
The crow grabbed a piece of stone in a beak and poured it into the pot of water.
Gradually, water came over the pitcher. Then the crow drank water at will.
After drinking the water, the crow thought- ‘Aha! This is the result of my hard work.
Those who work hard in the world, only they succeed.
प्यासे कौवे की कहानी
हिंदी अनुवाद – एक बार कोई कौआ गर्मी के मौसम में प्यास से बेचैन हो गया।
जल पीने के लिए वह इधर – उधर घूमा किंतु जल पाने में सफत नहीं हुआ।
आखिर में एक बाग में पेड़ के नीचे एक जल का घड़ा देखा।
उस जल के घड़े को देखकर वह खुश हो गया वह घड़े के पास गया। उस घड़े में थोड़ा ही पानी था।
वह बहुत ही निराश हुआ। दैवयोग से उस जल के घड़े के पास कुछ पत्थर के टुकड़े बिखरे हुए थे।
कौए ने एक – एक पत्थर के टुकड़े को चोंच में पकड़कर उस जल के घड़े में डाला।
धीरे – धीरे जल घड़े के ऊपर आ गया। तब कौए ने इच्छानुसार जल पिया।
जल पीकर कौए ने सोचा- ‘अहा! मेरे परिश्रम का ही यह फल है।
जो प्राणी संसार में परिश्रम करते है.वे ही सफल होते है।
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