संस्कृत में देश भक्ति कविता | Patriotism Poetry in Sanskrit

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Patriotism Poetry In Sanskrit

देश भक्ति कविता | Patriotism Poetry = धन्यं भारतवर्षम् (dhanyam bharat varsham)

धन्यं भारतवर्षं धन्यम् ।
पुण्यं भारतवर्षं पुण्यम् ॥

यस्य संस्कृतिः तोषदायिनी,
पापनाशिनी पुण्यवाहिनी।

यत्र पुण्यदा गंङ्गा याति,
सिन्धु-नर्मदा सदा विभाति।

सरस्वती च धन्या-धन्या,
यमुना कृष्णा मान्या मान्या।

शृणुमो यत्र च वेदं पुण्यम् ॥

धन्यं भारतवर्षं धन्यम्,
पुण्यं भारतवर्षं पुण्यम् ॥

यत्र पर्वताः रम्याः रम्याः,
ऋषयो मुनयो धन्याः धन्याः।

कैलासश्च हिमराजश्च,
विन्ध्य-सतपुड़ा-हिमाद्रिश्च।

अरावली पर्वतमाला च,
स्वर्ण-सुमेरु-हर्षकरश्च।

पुण्य-पर्वतैः पुण्यं पुण्यम्॥

धन्यं भारतवर्षं धन्यम्,
पुण्यं भारतवर्षं पुण्यम् ॥

यह कविता (धन्यं भारतवर्षं धन्यम्)संस्कृत की पुस्तक अमोदिनी से ली गई है। This poem (Dhanyam Dharat varsham Dhanyam) is taken from the Sanskrit book Amodini.


कविता का भावार्थ

इस गीत में कवि महान भारतवर्ष का वर्णन करते हुए कहता है कि :-

भारतवर्ष धन्य है सराहनीय, प्रशंसनीय है। तथा पवित्रता से युक्त है ( क्यों कि देवताओं ने इस भारत – भूमि में अवतार लिया है इसलिए)।

आगे कवि कहते हैं कि भारत की संस्कृति संतोष प्रदान करने वाली पाप का नाश करने वाली और पुण्य की वाहिका ( दिलाने वाली) है।

यहां पर ( भारत देश में ) गंगा जैसी पवित्र नदियां बहती है सिंधु नर्मदा जैसी नदियां इस देश में सुशोभित होती हैं और इसकी सुंदरता को बढ़ाती हैं।

और पवित्र महान सरस्वती नदी भी हमे धन्य-धन्य ( कृतार्थ ) कर देती है, यमुना कृष्णा जैसी नदी पवित्र, सम्माननीय मान्या-मान्या ( मानी ) जाती है।

यहां ( भारतवर्ष में ) पवित्र वेदों का मधुर स्वर हमें सुनने को मिलता है।।

धन्य है भारतवर्ष धन्य है, पवित्रता से युक्त भारतवर्ष पवित्र है।

यहा ( भारतवर्ष में ) पर्वत सबके मन को रम्य ( अच्छे लगने वाले), रमणीय ( अत्यंत सुन्दर ) हैं। इन पर्वतों पर कठोर तपस्या करने वाले साधक ऋषि मुनियों से ये भारतवर्ष धन्य हैं।

इन ( अच्छे लगने वाले ) पर्वतों में कैलास, हिमालय, विन्ध्य, सतपुड़ा, हिमाद्रि, अरावली पर्वतमाला और सोने की तरह आभा से युक्त सुमेरु पर्वत जो सबको हर्षित करता है ( खुशी देने वाला है )।

ऐसे पवित्र पर्वतों के द्वारा सबको पुण्य प्राप्त होता है सब पवित्रता से युक्त हो जाते हैं।

इसलिए हमारा भारतवर्ष धन्य हैं ( भारतवासी धन्य है ) पवित्र है हमारा भारतवर्ष पवित्रता से युक्त है।


Meaning of the poem

In this song, the poet describes:-

India is blessed, commendable admirable. And is full of purity (because the gods have incarnated in this land of India).

Further, the poet says that the culture of India is the destroyer of sin which gives satisfaction and is the vehicle of virtue.

Here (in the country of India) holy rivers like Ganges flow, rivers like Indus Narmada beautify this country and enhance its beauty.

And the holy great Saraswati river also makes us grateful, a river like Yamuna Krishna is considered sacred, honorable.

Here (in India) we get to hear the melodious voice of the holy Vedas.

Bharatvarsha is blessed, Bharatvarsha is full of purity.

Here (in India) the mountains are pleasing to everyone’s mind. This India is blessed by the sages who did severe penance on these mountains.

Among these (good looking) mountains are Kailas, Himalaya, Vindhya, Satpura, Himadri, Aravalli ranges and Mount Sumeru with gold like aura which makes everyone joyful (giving happiness).

Through such holy mountains, everyone receives merit. All become endowed with purity.

That’s why our Bharatavarsha is blessed. (The people of India are blessed) Our Bharatvarsha is full of purity.

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