संस्कृत भाषा में ज्ञान का भंडार छिपा हुआ है। यह हमें जीवन, नैतिकता, और संबंधों के बारे में गहन दृष्टिकोण प्रदान करती है। सुभाषित छोटे लेकिन गहन और सारगर्भित श्लोक होते हैं जो जीवन को दिशा देने वाली सीख देते हैं। इस ब्लॉग में हम कुछ सुंदर संस्कृत सुभाषित प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनका अर्थ हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में दिया गया है।
सूक्ति
“अनुकूलेऽपि कलत्रे नीचः परदारलम्पटो भवति।”
हिंदी में अर्थ : नीच व्यक्ति, चाहे उसकी पत्नी कितनी भी अनुकूल क्यों न हो, पराई स्त्रियों के प्रति आकर्षित होता है।
English Translation : A wicked person, even if his wife is perfectly suitable, is still attracted to other women.
व्याख्या : यह सुभाषित इस बात को स्पष्ट करता है कि जो व्यक्ति नीच या अनैतिक होता है, उसके लिए नैतिकता और शील का कोई महत्व नहीं होता। चाहे उसकी पत्नी कितनी भी गुणी, सुंदर और अनुकूल हो, वह व्यक्ति पराई स्त्रियों के प्रति आकर्षित होता रहता है। यह न केवल उसकी नीचता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि उसकी आंतरिक प्रवृत्तियाँ ही गलत हैं। सुभाषित यह सिखाता है कि व्यक्ति को अपनी आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए और अपने संबंधों का सम्मान करना चाहिए। एक गुणवान जीवन की आधारशिला नैतिकता और मर्यादा है, जिसका पालन करना हर किसी के लिए आवश्यक है।
Explanation : This subhashita highlights that a person who is wicked or immoral lacks respect for ethical conduct. Even if his wife is virtuous, beautiful, and perfectly suited for him, such a person is still drawn towards other women. This reveals not only his depravity but also his inability to control his immoral tendencies. The verse teaches that one should have self-discipline and honor their relationships. Moral integrity and adherence to ethical standards form the foundation of a virtuous life, and everyone must strive to follow these principles for personal and social harmony.