आज हम जानेगे संस्कृत व्याकरण का परिचय, वर्णमाला एवं शब्द का परिचय।
संस्कृत व्याकरण का परिचय
- संस्कृत ज्ञान विज्ञान की अक्षय निधि भाषा, विश्व की सर्वाधिक प्राचीन भाषा, वैज्ञानिक तथा निर्दोष भाषा है। विश्व का प्रथम साहित्य ऋग्वेद भी इस देव वाणी में उपलब्ध है अर्थात लिखा गया है।
किसी भी भाषा को जानने के लिए उसके मूल भूत को जानना चाहिए इसलिए व्याकरण का अध्ययन आवश्यक है। जैसा की हम जानते हैं आज के संदर्भ में जब भाषा को सीखने के लिए तकनीकी भाषा शिक्षण विधि का प्रयोग किया जा रहा है ऐसे में हम पाते है की जब संस्कृत भाषा के ग्रंथो की रचना हो रही थी साथ ही साथ संस्कृत व्याकरण की रचना भी उसी समय हो रही थी।
संस्कृत व्याकरण अथवा किसी भी भाषा के व्याकरण को जानना बहुत जरुरी है। किसी भी भाषा को बोलने के लिए तथा व्यवहार में लाने के लिए उसमे प्रयुक्त होने वाले शब्दों का सही अर्थ तथा व्याकरण आना जरुरी है। जैसा कि कहा गया है की –
यद्यपि बहु नाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम्।
स्वजनो श्वजनो माऽभूत्सकलं शकलं सकृत्शकृत्॥
अर्थात हे पुत्र भाषा को जानने के लिए भाषा को व्यवहार में प्रयोग करने के लिए आप भाषा के व्याकरण को जानो इतना जानो कि आप भाषा का सही प्रयोग कर सको गलत शब्दो का प्रयोग न कर सको।
इसलिए संस्कृत भाषा को जानने के लिए जो की हमारी देव वाणी है हमें उसके व्याकरण को जानना और पढ़ना होगा।
संस्कृत व्याकरण बहुत ही सरल और सहज है। व्याकरण के आद्य प्रवर्तक ब्रह्मा को माना गया है। आचार्य युधिष्ठिर मीमांसक ने आचार्य पाणिनि से पूर्व भी 85 व्याकरण के आचार्य हुए है ऐसा कहा है। आचार्य पाणिनि की अष्टाध्यायी आज व्याकरण के प्रामाणिक ग्रंथ के रूप में उल्लिखित है तथा अष्टाध्यायी के साथ साथ उस पर प्रक्रिया ग्रन्थ और व्याख्या ग्रन्थ भी लिखे गये है।
जैसे
- कात्यायन वररुचि वार्तिक उन्होंने अष्टाध्यायी के 1500 सूत्रों पर लगभग 4000 वार्तिक लिखे है।
- पतंजलि का महाभाष्य।
- भट्टोजिदीक्षित की सिद्धान्तकौमुदी।
- वरदराज की लघु सिद्धांत कौमुदी तथा मध्य सिद्धांत कौमुदी।
ये सब ऐसे ग्रंथ है जो हमें संस्कृत व्याकरण को सरल तरीके से सीखने में सहायक है।
तो भाषा को सिखने के लिए व्याकरण को सीखना बहुत ज़रूरी है। भाषा के मूलभूत को हम कैसे जान सकते हैं। आप इसको इस प्रकार से देखिये जैसे ही पाणिनि के हम प्रारम्भ में माहेश्वर सूत्र की बात करते हैं तो वही हमारी वर्णमाला प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार हम वर्णन ( माहेश्वर सूत्र ), पद, वाक्य-संरचना ( शब्द रूप, धातु रूप ), कारक, संधि, समास, प्रत्यय- कृत-प्रत्यय, तद्धित- प्रत्यय, स्त्री -प्रत्यय इत्यादि इन सभी को हम बहुत सरल तरीके से सीखे गए
संस्कृत सीखने की प्रक्रिया में हम सर्वप्रथम हम आज सीखेंगे
- वर्णन किसे कहते है
- शब्द किसे कहते है
वर्णन किसे कहते है
- वह छोटी से छोटी इकाई जो बोलने में सहायक होती है ( स्वर ) तथा जिसके टुकड़े नहीं किए जा सकते ( व्यंजन ) उसे वर्ण कहलाते हैं
माहेश्वर सूत्र
- माहेश्वर सूत्रों में संस्कृत के वर्णों का परिचय प्राप्त होता हैं| माहेश्वर सूत्र 14 प्रकार के है और ये किस प्रकार है-
माहेश्वर सूत्र
1. अइउण्। 2. ऋऌक्। 3. एओङ्। 4. ऐऔच्। 5. हयवरट्। 6. लण्। 7. ञमङणनम्। 8. झभञ्। 9. घढधष्। 10. जबगडदश्। 11. खफछठथचटतव्। 12. कपय्। 13. शषसर्। 14. हल्।
हिंदी स्वर :- अ, आ, इ , ई , उ , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ , अं , अ: , ऋ
हिंदी व्यंजन क , ख , ग , घ , ङ ( कवर्ग : संस्कृत में कु )
च , छ , ज , झ , ञ ( चवर्ग : संस्कृत में चु )
ट , ठ , ड , ढ , ण ( ड़ ढ़ ) ( टवर्ग : संस्कृत में टु )
त , थ , द , ध , न ( तवर्ग : संस्कृत में तु )
प , फ , ब , भ , म ( पवर्ग : संस्कृत में पु )
य , र , ल , व
श , ष , स , ह
क्ष , त्र , ज्ञ , श्र
स्वर:- अ, इ, उ, ऋ, ऌ, ए, ऐ, ओ, औ। (अच्)
व्यंजन:- ह, य, व, र, ल, ञ, म, ङ, ण, न, झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग, ड, द, ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प, श, ष, स, ह। (हल्)
अंतस्थ : य , र , ल , व
उष्म : श , ष , स , ह
संयुक्त व्यंजन : क्ष , त्र , ज्ञ , श्र
शब्द किसे कहते है
- वर्णों के सार्थक – समूह को शब्द कहते है जैसे-
(वर्ण) र्+आ+म्+अ = (शब्द) राम
(वर्ण) ल्+अ+त्+आ = (शब्द) लता,
(वर्ण) न्+अ+द्+ई = (शब्द) नदी,
आदि
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