रामायण का परिचय | Introduction to Ramayana
संस्कृत साहित्य में इतिहास संज्ञक दो ग्रन्थ प्राप्त होते हैं एक था रामायण दूसरा महाभारत। दोनों महाकाव्य के रूप में प्रसिद्ध हैं।
लौकिक संस्कृत साहित्य का प्रथम ग्रन्थ वाल्मीकि कृत रामायण है। यह भारतीयों का ही नहीं अपितु विश्व का का अत्यंत लोकप्रिय ग्रंथ है। इसमें 24000 श्लोक है जो सात कांडों में विभाजित है जिनके नाम है:-
रामायण के 7 कांड के नाम और सर्ग संख्या
संख्या | 7 कांड के नाम | सर्ग संख्या |
1 | बालकांड | 77 सर्ग |
2 | अयोध्याकांड | 119 सर्ग |
3 | अरण्यकांड | 75 सर्ग |
4 | किष्किन्धाकाण्ड | 67 सर्ग |
5 | सुंदरकांड | 68 सर्ग |
6 | युद्धकांड | 128 सर्ग |
7 | उत्तरकांड | 111 सर्ग |
रामायण ग्रंथ में राम-सीता, लक्ष्मण, हनुमान अदि का पावन जीवन चरित्र वर्णित है। इसमें 24000 श्लोक होने के कारण इसे चतुर्विंशति साहस्री संहिता तथा आदिकाव्य भी कहते है। रामायण में मुख्यतः अनुष्टुप् छन्द (श्लोक) हैं तथा किसी-किसी कांडों के अंत में उपजाति, इन्द्रवज्रा छन्द अदि भी मिलते है।
गायत्री मंत्र में 24 वर्ण होते हैं अतः यह मान्यता है कि इसको आधार मानकर रामायण में 24,000 श्लोक लिखे गये हैं। प्रत्येक 1000 श्लोक के बाद गायत्री मन्त्र के नये वर्ण से नया श्लोक प्रारम्भ होता है।
ॐ भूर् भुवः स्वः।तत् सवितुर्वरेण्यं।भर्गो देवस्य धीमहि।धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
गायत्री मंत्र
राजशेखर ने काव्यमीमांसा में इतिहास के दो भेद किये हैं:-
- परिक्रिया
- पुराकल्प
परिक्रियात्मक इतिहास एक नायक से सम्बद्ध है, पुराकल्पात्मक इतिहास अनेक नायकों से सम्बद्ध होता है।
इस प्रकार रामायण केवल एक नायक विषयक होने से परिक्रियात्मक इतिहास स्वीकार किया जा सकता है। महाभारत में अनेक नायक विषयणी कथायें होने से उसे पुराकल्पात्मक इतिहास माना जा सकता है।
संस्कृत साहित्य में वह दिन बहुत खास था, जब महर्षि वाल्मीकि Maharishi Valmiki तमसा नदी पर स्नान करने गए और वहाँ उन्होंने देखा कि एक व्याध ने एक कौञ्च (बगुले) को मार डाला।
जब क्रौञ्ची ने अपने प्रिय सखा को मरते हुए देखकर रोने लगी तो उसे सुनकर महर्षि वाल्मीकि Maharishi Valmiki इतने दुःखी तथा शोक में हो गए कि उनके मुख से अचानक छन्दोमयी वाणी फूट पड़ी :-
मा निषाद् प्रतिष्ठाम त्वमगम : शाश्वतीः समाः।
वाल्मीकि रामायण , बालकांड 2.22
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ।
हे निषाद!तुम्हें अनन्त वर्षों तक कोई प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी क्योंकि तुमने क्रीड़ा में रत (लगे हुए) क्रौञ्च पक्षी जोड़े में से एक को मार दिया।
ऋषि स्वयं आश्चर्यचकित हो गये कि अचानक ही उनके मुख से वेद से भिन्न एक नए छंद का निर्माण हुआ है। उसी समय ब्रह्मा, जो सृष्टिकर्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं, वहाँ आए और महर्षि के सामने आकर बोले :-
श्लोक एव त्वया बद्धो नात्र कार्या विचारणा।
मच्छन्दादेव ते ब्रह्मन् प्रवृत्तेयं सरस्वती ।।
हे ब्राह्मण तुमने श्लोक छंद को ही जन्म दिया है। इस संबंध में विचार विमर्श छोड़ दो। मेरी इच्छा से ही यह वाणी तुमसे निकली है। ब्रह्मा ने उन्हें रामायण की रचना करने का आदेश भी दिया और उन्हें त्रिकालदर्शी होने का आशीर्वाद भी दिया। त्रिकालदर्शी का अर्थ है जो तीनों कलो को देख सके :-
कुरु रामायणं कृत्स्नं श्लोकैर्बद्ध मनोहरम् ।
न ते वागनृता काव्ये काचिदत्र भविष्यति ।।
ब्रह्मा ने कहा कि राम के जीवन की समस्त रहस्यमयी या प्रत्यक्ष घटित घटनाओं से तुम अवगत रहोगे।
आनन्दवर्धन,भवभूति आदि अभी विद्वानों के अनुसार संस्कृत लौकिक साहित्य का प्रथम आदि काव्य ग्रंथ और आदि कवी वाल्मीकि कृत रामायण है। आदि शब्द का अर्थ है प्रथम तथा सर्वश्रेष्ठ। जिनका काव्य प्रथम तथा सर्वश्रेष्ठ हो उनका काव्य आदिकाव्य कहलाया।
काव्य लिखते समय मन में जो भावनाएँ उत्पन्न होती हैं , यदि वे भावनाएँ पाठक के मन में भी उत्पन्न हों तो काव्य सर्वश्रेष्ठ काव्य कहलाता है। तथा रामायण भी ऐसा ही काव्य है।
इसमें संदेह नहीं कि आज भी रामायण को सुनने पर अथवा दूरदर्शन पत्यक्ष देखने पर सभी प्रकार के दर्शक चाहे वह चोट हो या बड़े हर वर्ग के दर्शक सजल नेत्रों से गम्भीर हो कर सुनते हैं और न केवल आनन्दित होते हैं अपितु शिक्षा भी प्राप्त करते हैं।
रामायण में जीन के चतुर्विध पुरुषार्थों धर्म ,अर्थ , काम और मोक्ष का पूर्ण वर्णन उपलब्ध है। जबकि वैदिक साहित्य में अधिकतर धर्म व आध्यात्मिक चिंतन ज्यादा है।
इस काव्य में जनसाधारण के रीति-रिवाजों, धार्मिक विचारों व मान्यताओं का पूर्ण वर्णन उपलब्ध होता है। रामायण में जितने सुंदर रूप में भारतीय सभ्यता व संस्कृति का वर्णन हैं, उतनी सुन्दरता से किसी भी अन्य ग्रन्थ में उपलब्ध नहीं है।
इसके अतिरिक्त रामायण पहला ग्रंथ है जिसके पात्र देवता न होकर मनुष्य हैं तथा साधारण मनुष्यों के समान है। वे सभी किसी न किसी आदर्श को प्रतिबिम्बित करते हैं लेकिन साधारण मानवों की भांति सुख में सुखी और दुःख में दु:खी होते हैं।
उदाहरणार्थ रावण द्वारा सीता का अपहरण करने के पश्चात्। राम दुःखी तथा क्रोध करते हैं। राम का संदेश लेकर आए हुए हनुमान को देखकर सीता का सुखी होना आदि कुछ मुख्य उदाहरण हैं।
मनुष्य के साथ-साथ प्रकृति का भी जो विवरण प्रप्त होता है, उसका निरुपण कवि ने इस प्रकार किया है कि प्रकृति मनुष्य के जीवन का एक अभिन्न अंग बन गई है। कवि ने बाह्य प्रकृति तथा मनुष्य की अन्तः प्रकृति में अद्भुत सामंजस्य स्थापित किया है।
इन्हीं कारणों से तथा इस ग्रंथ की असाधारण वर्णन शक्ति , अनुपम चरित्र चित्रण, सुंदर कथावस्तु एवं सरल भाषाशैली के कारण भी ग्रंथ को आदिकाव्य अर्थात् प्रथम एवं सर्वश्रेष्ठ काव्य की उपाधि दी गई एवं इसके रचयिता को आदिकवि की उपाधि से विभूषित किया गया हैं।
रामायण में हमें उस समय के सामाजिक अवस्था का यथार्थ चित्रण मिलता है। वैसे तो कोई भी काव्य अपने समकालीन समाज का चित्रण करता है किंतु संक्षेप में रामायण में किया गया सामाजिक चित्रण जैसा काव्य निश्चय ही दुर्लभ है।
यह संस्कृतवाङ्मय में प्राप्त रामकथाओं के अतिरिक्त संसार के अनेक रामकथाओं जैसे अध्यात्म रामायण, अद्भुत रामायण कम्बरामायण आदि राम विषयक काव्यों का मूल उपजीव्य स्वीकार माना जा सकता है।
लौकिक संस्कृत साहित्य का प्रथम ग्रंथ वाल्मीकि कृत रामायण है।
रामायण में 24000, ( चतुर्विंशति साहस्री / २४,०००) श्लोक है।
रामायण में 7 कांड है।
रामायण के 7 कांड के नाम 1. बालकांड 2. अयोध्याकांड 3. अरण्यकांड 4. किष्किन्धाकाण्ड 5. सुंदरकांड 6. युद्धकांड 7. उत्तरकांड।
रामायण में मुख्यतः अनुष्टुप् छन्द (श्लोक) हैं तथा किसी-किसी कांडों के अंत में उपजाति, इन्द्रवज्रा छन्द अदि भी मिलते है।
रामायण में प्रायः सभी रसों का वर्णन आया है परन्तु करुण रस प्रधान है।
रामायण में चौपाई नही बल्कि श्लोक हैं। जिनकी संख्या लगभग 24000 है।
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