जाने भगवान परशुराम के जन्म, वध, युद्ध आदि की कथा| bhagwan parshuram

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  • भगवान परशुराम जी को आज्ञाकारी तथा माता-पिता भक्त माना जाता है। कहीं जगह पर ऐसी कथाएं मिलती है कि अपने पिता के कहने पर परशुराम जी ने अपनी माता का गला काट दिया था तथा पिता से प्राप्त वरदान में पुनः माता को जीवित करवा दिया। इस प्रकार की अनेक कथाएं हमें मिलती है जिनके बारे में आज हम जानेंगे

हिंदू धर्म के मुताबिक भगवान विष्णु के कुल 10 अवतार हैं-

काट दिया था तथा पिता से प्राप्त वरदान में पुनः माता को जीवित करवा दिया। इस प्रकार की अनेक कथाएं हमें मिलती है जिनके बारे में आज हम जानेंगे

  1. मत्स्य
  2. कूर्म
  3. वराह
  4. नरसिंह
  5. वामन
  6. परशुराम
  7. राम
  8. कृष्ण
  9. गौतम बुद्ध
  10. कल्कि

जिनमें से छठे अवतार भगवान परशुराम हैं तथा भगवत पुराण की भविष्यवाणी के अनुसार इस युग के अंत में भगवान विष्णु के अंतिम अवतार का नाम कल्कि होगा।

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभिषण:कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः

bhagwan parshuramपरशुराम जी का जन्म

  • प्राचीन काल में गाधि नामक एक राजा थे। उनकी सत्यवती नाम की एक कन्या थी। राजा गाधि ने अपनी पुत्री का विवाह महर्षि भृगु के पुत्र साथ करवा दिया। मानसी ब्लू इस विवाह से बहुत प्रसन्न थे तथा उन्होंने अपनी पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे किसी भी प्रकार का वर मांगने के लिए कहा। सत्यवती ने महर्षि भृगु से अपने तथा अपनी माता के लिए पुत्र जन्म की कामना की। महर्षि भृगु ने सत्यवती तथा उनकी माता के लिए अलग-अलग प्रकार के दो चरु दिए तथा यह बतलाया कि ऋतु स्नान के बाद तुम्हारी माता पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन करें और तुम भी पुत्र की इच्छा लेकर गूलर का आलिंगन करना। आलिंगन करने के पश्चात चरु का सेवन करना इससे तुम्हें और तुम्हारी माता को पुत्र की प्राप्ति हो जाएगी।

मां बेटी के चरु में अदला बदली हो जाती। महर्षि भृगु दिव्य दृष्टि से यह देख लेते है कि माता पुत्री ने एक दूसरे का चरु खा लिया हैं। फिर महर्षि अपनी पुत्रवधू के पास आकर बोलते हैं कि पुत्री तुमने अपनी माता का चरु तथा तुम्हरी माता ने तुम्हारा चरु खा लिया है इस कारण से अब तुम्हारी संतान ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेंगे और तुम्हारी माता की संतान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेंगी। इस पर सत्यवती ने भृगु से बार बार यह विनती की कि वह आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करें। भृगु ने बहुत विचार करने के बाद सत्यवती को यह आशीर्वाद दे दिया कि उसका बेटा ब्राह्मण का ही आचरण करेगा किंतु उनका जो पोता होगा वह ब्राह्मण होकर भी क्षत्रियों की तरह व्यवहार करेगा।

सत्यवती के एक पुत्र हुए जिनका नाम जमदग्नि था। आगे जाकर जमदग्नि मुनि ने राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका से विवाह कर लिया। रेणुका के पाच पुत्र हुए-

  1. रुमण्वान
  2. सुषेण
  3. वसु
  4. विश्वावसु
  5. परशुराम

इस तरह भगवान परशुराम का जन्म हुआ। परशुराम जी के जन्म के बाद की कहानी, कथाओं में परशुराम जी के छत्रिय कर्म की कथाएं हमें खूब देखने को मिलती जिनमें से कुछ कथाएं आपको निचे देकने को मिलेगी-

परशुराम नाम की कथा

  • परशुराम जी का नाम बचपन से परशुराम नहीं था उनकी माता ने इनका नाम राम रखा था। लेकिन उनकी पिता की आज्ञा थी कि वह हिमालय पर्वत जाएं और भगवान शिव की साधना करें। अपनी पिता की आज्ञा मानकर वह हिमालय जाकर भगवान शंकर की साधना करने लगे इस साधना से भगवान शंकर प्रसन्न हुए तथा उन्होंने एक परशु (फरसा) दीया जिसके कारण इनका नाम आगे जाकर परशुराम पड़ा

परशुराम द्वारा माता का गला काटने की कथा

  • एक दिन जमदग्नि ने अपनी पत्नी को हवन हेतु गंगा तट से जल लाने को भेजा। परशुराम जी की माता रेणुका जल के लिए गंगा तट जैसे ही पहुंचे वहां यक्ष राक्षस अप्सराओं के साथ जल क्रीड़ा कर रहा था। रेणुका यक्ष राक्षस कौन देखने लगी अर्थात आसक्त हो गई और जल लेजाने में देरी हो गई।

जमदग्नि ने अपनी पत्नी से जल देर में लाने का कारण पूछा पर रेणुका ने कोई जवाब नहीं दिया। फिर उन्हों ने अपनी त्रिकाल दृष्टि से सब कुछ देख लिया और क्रोधित होकर उन्होंने अपने चारो पुत्रो को अपनी माता का वध करने के लिए कहा। परशुराम जी के अलावा कोई भी पुत्र अपनी माता का वध करने को तैयार नहीं हुआ तथा अंतिम में पिता की आज्ञा से परशुराम जी ने अपने फंसे से माता का गला डर से अलग कर दीया।

परशुराम जी द्वारा आज्ञा मानने के कारण प्रसन्न होकर जमदग्नि ने पुत्र परशुराम जी को वर मांगने को कहा। परशुराम जी ने अपनी माता को पुनः जीवित करने तथा उनके द्वारा वध किए जाने की स्मृति नष्ट हो जाए और अपने लिए अमरता का वरदान मांगलिया।

परशुराम द्वारा क्षत्रियों का 21 बार वध करने की कथा

  • परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्नि को राजा हयहैय ने एक गाय दान में दी थी, राजा के बेटे कृत अर्जुन और कृतवीर्य अर्जुन गाय वापस मांगने लगे पर जमदग्नि ने गाय लौटने से मना कर दिया , तो राजाओं ने बल पूर्वक गाय छीन ली। पिता का अपमान देख कर परशुराम जी क्रोधित हो गए और उन्होंने जाकर राजा का वध कर दिया। राजा के सम्बन्धियों ने प्रतिशोध की भावना से जमदग्नि का वध कर दिया। इस पर परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय-विहीन कर दिया (हर बार हताहत क्षत्रियों की पत्नियाँ जीवित रहीं और नई पीढ़ी को जन्म दिया) अंत में पितरों की आकाशवाणी सुनकर उन्होंने क्षत्रियों से युद्ध करना छोड़कर तपस्या की ओर ध्यान लगाया।

भगवान गणेश और परशुराम जी की युद्ध की कथा

  • हिंदू धर्म ग्रंथ ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक दिन परशुराम जी अपने इष्ट महादेव के दर्शन के लिए कैलाश गए। वहां महादेव माता पार्वती को राम कथा सुना रहे थे। कथा में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न ना हो इसलिए उन्होंने अपना दिव्य त्रिशूल गणेश जी को देकर यह आज्ञा दी की वह द्वार से किसी को भी भीतर ना आने दिया जाए।

वही परशुराम कैलाश पहुंचकर महादेव के दर्शन के लिए द्वार की तरफ बढ़ने लगे तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया। परशुराम जी ने क्रोध में गणेश जी से पूछा कि तुम मुझे रोकने का साहस कैसे कर सकते हो। गणेश जी ने उनसे कहा द्वार के अंदर पेश करना मना है। परशुराम जी जबरदस्ती कक्ष में प्रवेश करने लगे तभी गणेश जी ने महादेव का त्रिशूल दिखाकर उन्हें पुनः रोकने का प्रयास किया।

इस कारण भगवान गणेश और परशुराम जी में युद्ध शुरू हो गया और परशुराम जी ने अपनी परशु से गणेश जी पर हमला कर दिया जिसके कारण उनका एक तंत्र टूट गया। तभी से गणेश जी को एकदंत नाम से भी पुकारा जाने लगा।

रामायण में परशुराम जी का वर्णन

  • परशुराम जी का वर्णन रामचरित मानस (रामायण) के बालकांड में मिलता है। जब सीताRamayan स्वयंवर में राम द्वारा शिव धनुष तोड़ दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि धनुष की टूट जाने की आवाज सुनते ही परशुराम जी मिथिला पुरी सीता स्वयंवर में पहुंच जाते हैं। क्रोधित होते हुए बोलते हैं कि वह कौन है जिसने धनुष को तोड़ा। इसी पर लक्ष्मण यह बोलते हैं कि इतना क्रोधित क्यों होते ऐसे धनुष तो हमने बचपन में हजारों तोड़े है। इसी तरह संवाद चलता रहता है तथा अंत में परशुराम जी समझ जाते हैं कि रामस्वयं विष्णु के अवतार हैं।

महाभारत में परशुराम जी का वर्णन

  • परशुराम जी का वर्णन महाभारत में कई जगहों पर मिलता है जैसे
  1. भीष्म तथा परशुराम जी की युद्ध की कथा जिसमें भीष्म द्वारा अंबा को स्वीकार न किए जाने के कारण प्रतिशोध वर्ल्ड अंबा सहायता मांगने परशुराम जी के पास जाती है। परशुराम जी सहायता का आश्वासन देते हुए भीष्म से 23 दिनों तक घमासान युद्ध करते हैं। लेकिन अपने पिता से इच्छा मृत्यु के वरदान पाने के कारण परशुराम शिव सेहरा नहीं पाते।
  2. परशुराम तथा द्रोणाचार्य जी की कथा कहा जाता है कि एक बार परशुराम जी अपनी संपूर्ण कमाई ब्राह्मणों को दान में दे रहे थे। कुछ समय बाद वहां द्रोणाचार्य जी भी आ पहुंचते हैं। लेकिन तब तक परशुराम जी अपने संपूर्ण कमाई दान चुके होते हैं। अंतिम में वह द्रोणाचार्य से कहते हैं आप मेरे किसी भी शस्त्र को ले सकते हैं। द्रोणाचार्य जी परशुराम जी के सभी शस्त्र तथा मंत्र आवश्यकता आने पर मुझे प्राप्त हो जाए ऐसा कहते हैं। परशुराम जी यह वरदान द्रोणाचार्य जी को देते हैं।
  3. परशुराम तथा कर्ण की कथा परशुराम कर्ण के गुरु थे एक कथा के अनुसार एक बार परशुराम कर्ण की जंघा पर सो रहे थे की की तभी एक कीड़ा करण के तलवों में काटने लगा। लेकिन अपनी गुरु की नींद ना टूटे इस कारण कर्ण उस पीड़ा को सहता रह और उसके पैरों से खून निकलना शुरू हो गया। अचानक परशुराम जी नींद से उठते ही समझ जाते हैं कि एक ब्राह्मण पुत्र में इतनी सहनशीलता नहीं हो सकती तथा वह कर्ण को श्राप देते हैं कि जब भी उसे मेरे द्वारा दी गई विद्या की आवश्यकता होगी तब वह उसके काम नहीं आयेगी।

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