वसन्ततिलका | Vasantatilaka
छन्द का नामकरण :-
- वसन्ततिलका छन्द को दो नामों से स्मरण किया जाता है। कुछ लोग इसे वसन्ततिलकम और कुछ लोग इसे वसन्ततिलका भी कहते है।
- दोनों ही नाम छन्द शास्त्र में प्रचलित है। केवल अन्तर इतना है कि वसन्ततिलकम् नंपुसकलिंग में है तथा वसन्ततिलका स्त्रीलिंग में प्रयुक्त शब्द होता है।
वसन्ततिलका छन्द परिचय :-
- वसन्ततिलका छन्द के प्रत्येक चरण में 14 अक्षर है तथा सम्पूर्ण श्लोक में 56 अक्षर है।
- इस छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमश तगण भगण दो जगण और दो गुरु होते हैं (तगण,भगण,जगण,जगण,गुरु,गुरु)।
- यही व्यवस्था चारों चरणों में होगी क्योंकि यह समवृत्त छन्द है।
- इस छन्द में दो बार यति आती है प्रथम बार (मध्य यति) आठवें अक्षर के बाद और (अन्तिम यति) छठें अक्षर के बाद।
वसन्ततिलका छन्द का लक्षण :-
- वृत्तरत्नाकर में इस छन्द का लक्षण इस प्रकार से प्राप्त होता है:-
उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ गः।
वृत्तरत्नाकर
लक्षणार्थ:- इस छन्द में एक तगण, एक भगण और दो जगण एवं दो गुरु वर्ण होते है।
- आचार्य पिंगल ने इस छन्द का लक्षण इस प्रकार दिया है:-
‘वसन्ततिलका त्-भौ जौ गौ’
आचार्य पिंगल
लक्षणार्थ:- वसन्ततिलका छन्द में एक तगण, एक भगण और दो जगण एवं दो गुरु वर्ण होते है।
- गंगादास छन्दोमंजरी में इस छन्द का लक्षण इस प्रकार से प्राप्त होता है:-
‘ज्ञेयं वसन्ततिलकं तभजा जगौ गः’
गंगादास छन्दोमंजरी
लक्षणार्थ:- जिस छन्द में यथाक्रम तगण, भगण, दो जगण और दो गुरु अक्षर हो तो उसे वसन्ततिलका अथवा वसन्ततिलक छन्द कहते हैं।
वसन्ततिलका छन्द का उदाहरण :-
” रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं
भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजश्रीः।
इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे
हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार॥ “
रात्रि बीतेगी, सुन्दर प्रभात होगा, सूर्य निकलेगा, कमल की शोभा खिलेगी-कमल के मध्य भाग में बैठे हुए भौरे के ऐसा सोचते रहने पर कामिनी को हाथी ने उखाड़ डाला। हाय खेद है! खेद है!! तात्पर्य यह है कि व्यक्ति को भविष्य (आने वाले कल) के बारे में अधिक नहीं।’ सोचना चाहिए। अन्यत्र कहा भी गया है-‘को वक्ता तारतम्यस्य तमेकं वेधसं विना।’
Night will be over, there will be morning, The sun will rise, lotus flower will open. While the bee inside the lotus flower thinks about all of it, the lotus plant gets uprooted by an elephant. Inference is -Dont just keep sitting and thinking, take ownership and do something.
उदाहरण विश्लेषण :-
- वसन्ततिलका छन्द में आने वाले गण एवं उनके चिन्ह :-
तगण भगण जगण जगण गु. गु.
ऽऽ। ऽ।। ।ऽ। ।ऽ। ऽ ऽ
प्रथमपाद | रात्रिर्ग | मिष्यति | भविष्य | ति सुप्र | भातं |
गण | तगण | भगण | जगण | जगण | गु. गु. |
चिन्ह | ऽऽ। | ऽ।। | ।ऽ। | ।ऽ। | ऽ ऽ |
द्वितीयपाद | भास्वानु | देष्यति | हसिष्य | ति पङ्क | जश्रीः। |
चिन्ह/गण | ऽऽ।(तगण) | ऽ।।(भगण) | ।ऽ।(जगण) | ।ऽ।(जगण) | ऽ ऽ(गु. गु.) |
तृतीयपाद | इत्थं वि | चिन्तय | ति कोश | गते द्वि | रेफे |
चिन्ह/गण | ऽऽ।(तगण) | ऽ।।(भगण) | ।ऽ।(जगण) | ।ऽ।(जगण) | ऽ ऽ(गु. गु.) |
चतुर्थपाद | हा हन्त | हन्त न | लिनीं ग | ज उज्ज | हार |
चिन्ह/गण | ऽऽ।(तगण) | ऽ।।(भगण) | ।ऽ।(जगण) | ।ऽ।(जगण) | ऽ ऽ(गु. गु.) |
ध्यान दें:- पादान्त में लघु वर्ण भी विकल्प से गुरु माना जाता है अतएव यहाँ पादान्त वर्ण हस्व (लघु) होते हुए भी गुरु वर्ण गिना गया है।
- वसन्ततिलका छन्द में आने वाले वर्ण एवं यति :-
वर्ण | आठवें वर्ण के बाद यति | छठें वर्ण के बाद (अन्त में) यति |
14 | रात्रिर्गमिष्यति भवि | ष्यति सुप्रभातं |
14 | भास्वानुदेष्यति हसि | ष्यति पङ्कजश्रीः। |
14 | इत्थं विचिन्तयति को | शगते द्विरेफे |
14 | हा हन्त हन्त नलिनीं | गज उज्जहार॥ |
अतः इस श्लोक के प्रत्येक चरण में 14 वर्ण है। इस श्लोक के प्रत्येक चरण में क्रमश तगण, भगण, जगण, जगण और दो गुरु है। मध्य यति 8 अक्षर के बाद और अन्तिम यति 6 अक्षर के बाद है यह लक्षण चारों चरणों में विद्यमान होने से वसन्ततिलका का लक्षण घटित होता है।
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- इस छन्द का विशेष परिचय देने के लिये एक छोटी सी ऐतिहासिक कहानी :-
ग्यारहवीं शताब्दी के इतिहास में मालवा नरेश भोज देव थे। वे बहुत बड़े पंडित एवं विद्वान थे। उन्होंने 84 ग्रन्थों की रचना की। उन्होंने एक नियम बना दिया था कि हमारी राजधानी धारानगरी में कोई भी मूर्ख व्यक्ति न रहें। जो भी निवास करें पंडित विद्वान या कवि हो। संयोग वश एक दिन उनके सिपाहियों ने एक जुलाहे को पकड़ कर उनके समक्ष लाया और बोला कि हे राजन! यह कुछ भी नहीं जानता है अर्थात् मूर्ख है इसलिए इसके दण्ड की व्यवस्था की जाय। किन्तु राजा ने सोचा कि बिना परीक्षा किये दण्ड की व्यवस्था नहीं करनी चाहिए। इसलिए उसने जुलाहे से पूछा हे जुलाहे! जो सिपाही कह रहे हैं वह ठीक है?
तो जुलाहे ने काव्य में उत्तर देते हुए कहा :-
“काव्यं करोमि नहि चारुतरं करोमि
यत्नात् करोमि यदि चारुतरं करोमि ।
भूपाल-मौलि-मणि-रंजित-पादपीठः
हे साहसांक! कवयामि वयामि यामि।।”
इस प्रकार इसमें इतने सुन्दर शब्दों का संयोजन किया गया था। जिसको सुनकर सभी दंग रह गये किन्तु राजा उसकी शब्दयोजना को सुनकर प्रसन्न हो गये और उसको नगर में रहने की सुन्दरतम् व्यवस्था करते हुए पुरस्कृत किया।
सामान्य प्रश्न
वसन्ततिलका छन्द का लक्षण “उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ गः“।
वसन्ततिलका छन्द का उदाहरण :-
“रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं
भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजश्रीः।
इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे
हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार॥“
वसन्ततिलका छन्द के प्रत्येक चरण में 14 अक्षर है तथा चारों चरणों (श्लोक) में 56 अक्षर होते हैं।
वसन्ततिलका छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमश तगण भगण दो जगण और दो गुरु आते है।
वसन्ततिलका छन्द में दो बार यति आती है:- प्रथम बार 8 अक्षर के बाद और अंत में 6 अक्षर के बाद।