उपजाति छन्द |  Upajati Chhand

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उपजाति

उपजाति छन्द परिचय :-

  • उपजाति छन्द के प्रत्येक चरण में 11 अक्षर है तथा सम्पूर्ण श्लोक में 44 अक्षर होते है।
  • इस छन्द के प्रत्येक चरण में कोई गण क्रम नहीं होता अर्थात इन्द्रवज्रा तथा उपेन्द्रवज्रा के गणों का मिश्रण होता है।
  • यही व्यवस्था चारों चरणों में होगी क्योंकि यह समवृत्त छन्द है।
  • इस छन्द के पाद के अन्त में यति होती है।

उपजाति छन्द का लक्षण :-

  • वृत्तरत्नाकर में इस छन्द का लक्षण इस प्रकार से प्राप्त होता है:-

अनन्तरोदीरितलक्ष्मभाजौ
पादौ यदीयावुपजातयस्ताः ।
इत्थं किलान्यास्वपि मिश्रितासु
वदन्ति जातिष्विदमेव नाम॥

वृत्तरत्नाकर

लक्षणार्थ:- जिस छन्द में इन्द्रवज्रा तथा उपेन्द्रवज्रा के चरणों का मिश्रण होता है वह उपजाति छन्द होता है।


  • उक्त छन्दों के आगे पीछे का कोई सुनिश्चित क्रम नहीं है। पिङ्गलच्छन्दसूत्र की हलायुध वृत्ति में इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा के योग से विशेष नामों सहित चौदह भेदों का उल्लेख किया है

उपजाति के चौदह भेद एवं उनके नाम :-

उपजाति के भेदप्रथमपादद्वितीयपादतृतीयपादचतुर्थपादनाम
1कीर्तिः
2वाणी
3माला
4शाला
5हंसी
6माया
7जाया
8बाला
9आर्द्रा
10भद्रा
11प्रेमा
12रामा
13ऋद्धिः
14बुद्धिः

यहाँ ‘इ’ का अर्थ इन्द्रवज्रा और ‘उ’ का अर्थ उपेन्द्रवज्रा है। इस प्रकार से उपजाति के चौदह भेद हुए।


उपजाति छन्द का उदाहरण :-

अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा
हिमालयो नाम नगाधिराजः ।
पुर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य
स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः ॥

कुमारसम्भवम्

भारतवर्ष के उत्तर दिशा में देवताओं की आत्मा वाला पर्वतों का राजा हिमालय है, जो पूर्व और पश्चिम दोनों समुद्रों का अवगाहन करके पृथ्वी के मापने के दण्ड के समान स्थित है। तात्पर्य यह है कि हिमालय का विस्तार ऐसा है कि वह पूर्व और पश्चिम दोनों दिशाओं के समुद्रों को छू रहा है।

उदाहरण विश्लेषण :-

  • उपजाति छन्द में आने वाले गण एवं उनके चिन्ह :-
    यह उदाहरण श्लोक उपजाति के 14 भेदों में से 10 भेद ‘भद्रा‘ है जिसमे प्रथम और तृतीयपाद इन्द्रवज्रा का होता है तथा द्वितीय और चतुर्थपाद उपेन्द्रवज्रा का होता है।
इन्द्रवज्रा के चिन्ह एवं गणउपेन्द्रवज्रा के चिन्ह एवं गण
ऽऽ। ऽऽ। ।ऽ। ऽ ऽ।ऽ। ऽऽ। ।ऽ। ऽ ऽ
तगण तगण जगण गुरु गुरुजगण तगण जगण गुरु गुरु
प्रथमपाद इन्द्रवज्रा का हैअस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा
इन्द्रवज्रा के गणतगणतगणजगणगुरु, गुरु
इन्द्रवज्रा के चिन्हऽऽ।ऽऽ।।ऽ।ऽ, ऽ
द्वितीयपाद उपेन्द्रवज्रा का हैहिमाल यो नामनगाधिराजः।
उपेन्द्रवज्रा के चिन्ह/गण।ऽ।(जगण)ऽऽ।(तगण)।ऽ।(जगण)ऽ, ऽ(गुरु, गुरु)
तृतीयपाद इन्द्रवज्रा का हैपुर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य
इन्द्रवज्रा के चिन्ह/गणऽऽ।(तगण)ऽऽ।(तगण)।ऽ।(जगण)ऽ, ऽ(गुरु, गुरु)
चतुर्थपाद उपेन्द्रवज्रा का हैस्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः।
उपेन्द्रवज्रा के चिन्ह/गण।ऽ।(जगण)ऽऽ।(तगण)।ऽ।(जगण)ऽ, ऽ(गुरु, गुरु)


इस श्लोक के प्रथम एवं तृतीय चरण में क्रमशः (इन्द्रवज्रा के गण) तगण, तगण, जगण और अन्त में दो गुरू है और द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में क्रमशः (उपेन्द्रवज्रा के गण) जगण, तगण, जगण और अन्त में दो गुरू है। पाद के अन्त में यति है। अतः इस श्लोक में उपजाति छन्द का लक्षण घटित हो रहा है।


सामान्य प्रश्न
उपजाति छन्द का लक्षण क्या है?

उपजाति छन्द का लक्षण
अनन्तरोदीरितलक्ष्मभाजौ
पादौ यदीयावुपजातयस्ताः ।
इत्थं किलान्यास्वपि मिश्रितासु
वदन्ति जातिष्विदमेव नाम॥
“।

उपजाति छन्द का उदाहरण क्या है?

उपजाति छन्द का उदाहरण :-
अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा
हिमालयो नाम नगाधिराजः।
पुर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य
स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः॥

उपजाति छन्द के प्रत्येक चरण में कितने अक्षर होते हैं?

उपजाति छन्द के प्रत्येक चरण में 11 अक्षर है तथा चारों चरणों (श्लोक) में 44 अक्षर होते हैं।

उपजाति छन्द के प्रत्येक चरण में कौन कौन से गण आते है?

उपजाति छन्द के प्रत्येक चरण में कोई गण क्रम नहीं होता अर्थात इन्द्रवज्रा तथा उपेन्द्रवज्रा के गणों का मिश्रण होता है।
जैसे उदाहरण :- इस छन्द का प्रथम तथा तृतीय चरण उपेन्द्रवज्रा छन्दानुसार तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण इन्द्रवज्रानुसार हैं। अतः इसे उपजाति छन्द कहा जा सकता है।



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