स्रग्विणी छन्द | Sragvini Chhand

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sragvini chhand

स्रग्विणी | Sragvini

छन्द का नामकरण :-

  • सर्वप्रथम हम इस छन्द का जो नाम है उसके अभिप्राय को समझते हैं।
  • संस्कृत में ‘माला’ के लिये एक शब्द प्रयोग होता है जिसका नाम है ‘स्रक’। स्रक का अर्थ होता है- माला।
    स्रक शब्द स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होता है। इसका रुप इस प्रकार से चलता है-स्रक, स्रजौ, स्रजः इत्यादि।
  • अतः ‘स्रक’ शब्द से ही ‘स्रग्वी’ शब्द बनता है। इस प्रकार माला धारण करने वाले पुरुष को संस्कृत में ‘स्रग्वी’ कहेंगे और माला धारण करने वाली स्त्री ‘स्रग्विणी’ कही जायेगी।
  • जैसे- धनी और धनिनी, गुणी और गुणिनी, ज्ञानी और ज्ञानिनी, उसी प्रकार स्रग्वी और स्रग्विणी का प्रयोग होता है।
  • हमारे आचार्यों ने प्रायः छन्दों का नाम या तो नपुसंकलिंग में है या फिर स्त्रीलिंग में रखा है।
  • जैसे:- शिखरिणी, मालिनी, शालिनी इत्यादि सारे शब्द स्त्रीलिंग में है। भुजंगप्रयातम्, द्रुतविलम्बित नपुसंक लिंग में है।
  • इस प्रकार स्रग्विणी का तात्पर्य हुआ माला को धारण करने वाली।
  • माला से शोभा उत्पन्न होती है तो शोभा को उत्पन्न करने वाली को ‘स्रग्विणी’ कहेगे।

स्रग्विणी छन्द परिचय :-

  • स्रग्विणी छन्द के प्रत्येक चरण में 12 वर्ण है तथा सम्पूर्ण श्लोक में 48 अक्षर है।
  • इस छन्द के प्रत्येक चरण में चार रगण होते हैं (रगण,रगण,रगण,रगण)।
  • यही व्यवस्था चारों चरणों में होगी क्योंकि यह समवृत्त छन्द है।
  • इस छन्द के पाद के अन्त में यति होती है।

स्रग्विणी छन्द का लक्षण :-

  • गंगादास छन्दोमंजरी में स्रग्विणी छन्द का लक्षण इस प्रकार दिया है:-

‘कीर्तितैश् चतूरेफिका स्रग्विणी’

छन्दोमंजरी

लक्षणार्थ:- जहाँ प्रत्येक पाद में चार रगण एवं चरण के अन्त में विराम हो तो वहाँ स्रग्विणी नामक छन्द होता हैं।


  • वृत्तरत्नाकर में इस छन्द का लक्षण इस प्रकार से प्राप्त होता है:-

‘ रैश्चतुर्भिर्युता स्रग्विणी संगता (सम्मता)’

वृत्तरत्नाकर

लक्षणार्थ:- जिस पद्य के प्रत्येक चरण में चार रगण हों, उसे स्रग्विणी छन्द कहते हैं। इसके पाद के अन्त में यति होती है।


  • पिंगल छन्द सूत्र में स्रग्विणी छन्द का लक्षण इस प्रकार दिया गया है:-

‘स्रग्विणी रः’

छन्द सूत्र

लक्षणार्थ:- स्रग्विणी छन्द के प्रत्येक पाद में चार रगण प्राप्त होते हैं।


स्रग्विणी छन्द का उदाहरण :-

अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं
जानकीनायकं रामचंद्रं भजे ॥

अच्युताष्टकम्

अच्युत, केशव, राम, नारायण, कृष्ण, दामोदर, वासुदेव, हरि, श्रीधर, माधव, गोपिकावल्लभ तथा जानकीनायक रामचन्द्रजी को मैं भजता हूँ।


उदाहरण विश्लेषण :-

  • स्रग्विणी छन्द में आने वाले गण एवं उनके चिन्ह :-
    रगण रगण रगण रगण
    ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ
प्रथमपादअच्युतंकेशवंरामनारायणं
गणरगणरगणरगणरगण
चिन्हऽ।ऽऽ।ऽऽ।ऽऽ।ऽ
द्वितीयपादकृष्णदामोदरंवासुदेवं हरिम्।
चिन्ह/गणऽ।ऽ(रगण)ऽ।ऽ(रगण)ऽ।ऽ(रगण)ऽ।ऽ(रगण)
तृतीयपादश्रीधरंमाधवंगोपिकावल्लभं
चिन्ह/गणऽ।ऽ(रगण)ऽ।ऽ(रगण)ऽ।ऽ(रगण)ऽ।ऽ(रगण)
चतुर्थपादजानकीनायकंरामचंद्रं भजे॥
चिन्ह/गणऽ।ऽ(रगण)ऽ।ऽ(रगण)ऽ।ऽ(रगण)ऽ।ऽ(रगण)

अतः इस श्लोक के प्रत्येक चरण में चार रगण वर्ण हैं और पाद के अन्त में यति हैं अतः इस श्लोक में स्रग्विणी छन्द का लक्षण घटित हो रहा है।


यहां भी पढ़ें
  • स्रग्विणी छन्द के प्रत्येक चरण में 12 अक्षर होते हैं और स्रग्विणी छन्द का भुजंगप्रयात छन्द से बहुत बड़ा साम्य है। क्योंकि भुजंगप्रयात में आपने देखा कि केवल एक ही गण क्रम से चार बार ही आता है और वही व्यवस्था स्रग्विणी में भी है। अन्तर केवल गण का है।
  • भुजंगप्रयात के प्रत्येक चरण में चार यकार आते है। स्रग्विणी में अन्तर केवल इतना है कि इसमें यकार की जगह अर्थात् यगण की जगह चार रगण एक ही क्रम में आते है इसलिये इस छन्द का भुजंगप्रयात के साथ बहुत साम्य है।
  • दोनों एक ही प्रकार के है। गणों की व्यवस्था अलग होने के कारण दोनों के छन्दों के लय मे परिवर्तन है। इस प्रकार भुजंगप्रयात का लय कुछ और है स्रग्विणी का लय कुछ और है।
  • यदि चार रगण के आने से स्रग्विणी छन्द बनता है अर्थात् रगण उसे कहते है ‘रलमध्यः‘ अर्थात् रगण में लघु वर्ण बीच में होता है:-लः लघुवर्णः मध्ये यस्य सः लमध्यः। रश्चासौ लमध्य इति रलमध्यः। अर्थात् जब लघु अक्षर मध्य में आयेगा तो स्वभावतः प्रथम और तृतीय अक्षर दीर्घ होगें।
  • ‘भुजंगप्रयातम्’ छन्द का स्त्रोत वाङ्मय में ज्यादा प्रयोग हुआ है उसी प्रकार स्रग्विणी छन्द का भी स्त्रोत साहित्य में बहुत ज्यादा प्रयोग हुआ है। स्रग्विणी छन्द में पढ़ते समय बहुत प्रवाह होता है।

सामान्य प्रश्न
स्रग्विणी छन्द का लक्षण क्या है?

स्रग्विणी छन्द का लक्षण “कीर्तितैश् चतूरेफिका स्रग्विणी’“।

स्रग्विणी छन्द का उदाहरण क्या है?

स्रग्विणी छन्द का उदाहरण :-
अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं
जानकीनायकं रामचंद्रं भजे ॥

स्रग्विणी छन्द के प्रत्येक चरण में कितने अक्षर होते हैं?

स्रग्विणी छन्द के प्रत्येक चरण में 12 अक्षर है तथा चारों चरणों (श्लोक) में 48 अक्षर होते हैं।

स्रग्विणी छन्द के प्रत्येक चरण में कौन कौन से गण आते है?

स्रग्विणी छन्द के प्रत्येक चरण में चार रगण आते है।


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