स्रग्धरा | Sragdhara
छन्द का नामकरण :-
- स्रग्धरा का अर्थ माला को धारण करने वाली है।
- इस छन्द में कवि अपनी बात को ‘स्रक्’ अर्थात् ‘माला’ रुप में विस्तार के साथ कहता है।
- यह एक ऐसा विशिष्ट छन्द है, जिसके इक्कीस अक्षरों का विभाजन यति की दृष्टि से सात-सात अक्षरों में बराबर किया गया है और इस तरह सात-सात अक्षरों की समानाकार वाली तीन मालाएँ बन जाती है।
स्रग्धरा छन्द परिचय :-
- स्रग्धरा छन्द के प्रत्येक चरण में 21 अक्षर है तथा सम्पूर्ण श्लोक में 76 अक्षर है।
- इस छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमश मगण रगण भगण नगण और तीन यगण होते हैं (मगण,रगण,भगण,नगण,यगण,यगण,यगण)।
- यही व्यवस्था चारों चरणों में होगी क्योंकि यह समवृत्त छन्द है।
- इस छन्द में 7-7 वर्ण के बाद तीन बार यति होती है।
स्रग्धरा छन्द का लक्षण :-
- गंगादास छन्दोमंजरी में इस छन्द का लक्षण इस प्रकार से प्राप्त होता है:-
छन्दोमंजरी
“म्रभ्नैर्यानां त्रयेण त्रिमुनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयम्”।
लक्षणार्थ:- जिसके प्रत्येक चरण में मगण, रगण, भगण, नगण और तीन यगण हो उसको स्रग्धरा छन्द कहते है। इसमें ‘त्रिमुनियतियुता’ अर्थात् मुनि हमारे यहाँ सप्त के प्रतीक है क्योंकि पुराणों में सप्त ऋषियों की बात कही गयी है। कहने का आशय यह है कि सात-सात अक्षरों के क्रम से इसमें तीन बार यति आयेगी।
- पिङ्गल छन्दसूत्र में इस छन्द का लक्षण इस प्रकार से प्राप्त होता है:-
“स्रग्धरा म्रौ भ्नौ यौ य् त्रिःसप्तकाः”।
छन्दसूत्र
लक्षणार्थ:- इस छन्द के चारों पादों में मगण, रगण, भगण, नगण तथा तीन यगण के क्रम से 21 वर्ण होते है। सात-सात अक्षरों के क्रम से इसमें तीन बार यति होती हैं।
स्रग्धरा छन्द का उदाहरण :-
या सृष्टिः स्रष्टुराद्या वहति विधिहुतं या हविर्या च होत्री
अभिज्ञानशाकुन्तलम्
ये द्वे कालं विधत्तः श्रूतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम् ।
यामाहुः सर्वबीजप्रकृतिरिति यया प्राणिनः प्राणवन्तः
प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः ॥
जो स्त्रष्टा की प्रथम सृष्टि है, वह अग्नि और विधिपूर्वक हवन की हुई आहुति का वहन करती है, जो हवि है और जो होत्री है, जो दो सूर्य और चन्द्र का विधान करते हैं, जो शब्द-गुण से युक्त होकर आकाश और सम्पूर्ण विश्व को व्याप्त किए हुए हैं, जिस पृथ्वी को सम्पूर्ण बीजों का मूल कहा जाता है और जिस वायु के कारण प्राणी, प्राण को धारण करते हैं, भगवान शिव प्रसन्न होकर अपने इन आठ रूपों के द्वारा हमारी रक्षा करें।
उदाहरण विश्लेषण :-
- स्रग्धरा छन्द में आने वाले गण एवं उनके चिन्ह :-
मगण रगण भगण नगण यगण यगण यगण
ऽऽऽ ऽ।ऽ ऽ।। ।।। ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ
प्रथमपाद | या सृष्टिः | स्रष्टुरा | द्या वह | ति विधि | हुतं या | हविर्या | च होत्री |
गण | मगण | रगण | भगण | नगण | यगण | यगण | यगण |
चिन्ह | ऽऽऽ | ऽ।ऽ | ऽ।। | ।।। | ।ऽऽ | ।ऽऽ | ।ऽऽ |
द्वितीयपाद | ये द्वे का | लं विध | त्तः श्रूति | विषय | गुणा या | स्थिता व्या | प्य विश्वम्। |
चिन्ह/गण | ऽऽऽ(मगण) | ऽ।ऽ(रगण) | ऽ।।(भगण) | ।।।(नगण) | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) |
तृतीयपाद | यामाहुः | सर्वबी | जप्रकृ | तिरिति | यया प्रा | णिनः प्रा | णवन्तः |
चिन्ह/गण | ऽऽऽ(मगण) | ऽ।ऽ(रगण) | ऽ।।(भगण) | ।।।(नगण) | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) |
चतुर्थपाद | प्रत्यक्षा | भिः प्रप | न्नस्तनु | भिरव | तु वस्ता | भिरष्टा | भिरीशः। |
चिन्ह/गण | ऽऽऽ(मगण) | ऽ।ऽ(रगण) | ऽ।।(भगण) | ।।।(नगण) | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) |
- स्रग्धरा छन्द में आने वाले वर्ण एवं यति :-
वर्ण | सातवें वर्ण के बाद यति | सातवें वर्ण के बाद यति | सातवें वर्ण के बाद यति |
21 | या सृष्टिः स्रष्टुराद्या | वहति विधिहुतं | या हविर्या च होत्री |
21 | ये द्वे कालं विधत्तः | श्रूतिविषयगुणा | या स्थिता व्याप्य विश्वम् । |
21 | यामाहुः सर्वबीज | प्रकृतिरिति यया | प्राणिनः प्राणवन्तः |
21 | प्रत्यक्षाभिः प्रपन्न | स्तनुभिरवतु व | स्ताभिरष्टाभिरीशः॥ |
अतः इस श्लोक के प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण रगण भगण नगण और तीन यगण हैं इस में सात-सात वर्ण के बाद तीन बार यति हैं अतः इस श्लोक में स्रग्धरा छन्द का लक्षण घटित हो रहा है।
यहां भी पढ़ें
- स्रग्धरा छन्द संस्कृत का बहुत लम्बे चरण वाला छन्द माना जाता है। क्योंकि इसके प्रत्येक चरण में 21 अक्षर होते है।
- यही कारण है कि इस छन्द का प्रयोग प्रायः कवियों ने लम्बे प्राकृतिक वर्णनों के लिए या कोई अन्य ऐसा प्रसंग है जैसे-जंगली जानवरों का वर्णन या किसी नगर का वर्णन है। इस प्रकार के लम्बे वर्णनों का इसमें प्रयोग किया गया है।
- स्रग्धरा के पहले दो छंदों का नाम मालिनी एवं स्रग्विणी इस प्रकार सुना है। सच बात तो यह है कि जो अर्थ मालिनी और स्रग्विणी का है, वही अर्थ स्रग्धरा का भी है। केवल प्रकृति और प्रत्यय का अन्तर है। स्रग्धरा में दो शब्द है ‘स्रक’ एवं ‘धरा’ जिसमें स्रक का अर्थ है ‘माला’ और धरा का अर्थ है ‘धारण करने वाली’।
- स्रग्धरा छन्द में जब कवि को ढेर सारा अभिप्राय या बहुत लम्बा वृतान्त का वर्णन करना होता है या प्रभुत अर्थ को परस्पर समेटना होता है तब वह प्रायः इस छन्द का प्रयोग होता है।
- ज्यादातर देखा गया है कि संस्कृत के अधिकांश नाटककारों ने प्रारम्भ में मंगलाचरण अर्थात् नान्दी पाठ स्रग्धरा छन्द में ही किया है। कविकुलगुरु कालिदास ने ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्‘ में नान्दी पाठ स्रग्धरा छन्द में ही किया है।
सामान्य प्रश्न
स्रग्धरा छन्द का लक्षण “म्रभ्नैर्यानां त्रयेण त्रिमुनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयम्“।
स्रग्धरा छन्द का उदाहरण :-
“या सृष्टिः स्रष्टुराद्या वहति विधिहुतं या हविर्या च होत्री
ये द्वे कालं विधत्तः श्रूतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम्।
यामाहुः सर्वबीजप्रकृतिरिति यया प्राणिनः प्राणवन्तः
प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः॥“
स्रग्धरा छन्द के प्रत्येक चरण में 21 अक्षर है तथा चारों चरणों (श्लोक) में 76 अक्षर होते हैं।
स्रग्धरा छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमश मगण रगण भगण नगण और तीन यगण आते है।
स्रग्धरा छन्द में तीन बार यति आती है:- प्रथम बार 7 अक्षर के बाद, मध्य में 7 अक्षर के बाद और अंत में भी 7 अक्षर के बाद।