मन्दाक्रान्ता छन्द | Mandakranta Chhand

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मन्दाक्रान्ता | Mandakranta

मन्दाक्रान्ता छन्द परिचय :-

  • मन्दाक्रान्ता छन्द के प्रत्येक चरण में 17 अक्षर है तथा सम्पूर्ण श्लोक में 68 अक्षर है।
  • इस छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमश मगण भगण नगण दो तगण और अन्त में दो गुरू होते हैं (मगण,भगण,नगण,तगण,तगण,गुरू,गुरू)।
  • यही व्यवस्था चारों चरणों में होगी क्योंकि यह समवृत्त छन्द है।
  • इस छन्द में 4, 6, 7 वर्ण के बाद यति होती है।

मन्दाक्रान्ता छन्द का लक्षण :-

  • वृत्तरत्नाकर में इस छन्द का लक्षण इस प्रकार से प्राप्त होता है:-

“मन्दाक्रान्ता जलधि षडगैम्भौंनतौ ताद् गुरु चेत्”।

वृत्तरत्नाकर

लक्षणार्थ:- जिस छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमशः ‘म्भौं’ मगण भगण होते हैं उसके बाद नतौ अर्थात् नगण व तगण होते हैं उसके बाद ताद् गुरु अर्थात् तगण व दो गुरू वर्ण हो उसे मन्द्राक्रान्ता छन्द कहते हैं। यति के लिए कहते है जलाधिषडगैः अर्थात् छन्द शस्त्र में जलधिः समुद्र चार, षड छः और नगैः नाग से सात संख्या का बोध होता है। अर्थात् इस छन्द में चार छः, सात पर यति होती है।


  • छन्दोमंजरी में इस छन्द का लक्षण इस प्रकार से प्राप्त होता है:-


“मन्दाक्रान्ताम्बुधिरसनगैर्मोभनौ तौ गयुग्मम्‌”।

छन्दोमंजरी

लक्षणार्थ:- जिसके प्रत्येक चरण में मगण, भगण, नगण, दो तगण, और अन्त में दो गुरू हो उसको मन्दाक्रान्ता छन्द कहते है। इसमें चार, छः और सात पर यति होती है।


मन्दाक्रान्ता छन्द का उदाहरण :-

कश्चित्‍कान्‍ताविरहगुरुणा स्‍वाधिकारात्‍प्रमत:
शापेनास्‍तग्‍ड:मितमहिमा वर्षभोग्‍येण भर्तु:।
यक्षश्‍चक्रे जनकतनयास्‍नानपुण्‍योदकेषु
स्निग्‍धच्‍छायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु।।

मेघदूत

कोई यक्ष था। वह अपने काम में असावधान हुआ तो यक्षपति ने उसे शाप दिया कि वर्ष-भर पत्‍नी का भारी विरह सहो। इससे उसकी महिमा ढल गई। उसने रामगिरि के आश्रमों में बस्‍ती बनाई जहाँ घने छायादार पेड़ थे और जहाँ सीता जी के स्‍नानों द्वारा पवित्र हुए जल-कुंड भरे थे।

उदाहरण विश्लेषण :-

  • मन्दाक्रान्ता छन्द में आने वाले गण एवं उनके चिन्ह :-
    मगण भगण नगण तगण तगण गुरू गुरू
    ऽऽऽ ऽ।। ।।। ऽऽ। ऽऽ। ऽ ऽ
प्रथमपादकश्चित्‍कान्‍ताविरहगुरुणा स्‍वाधिकारात्‍प्रमत:
गणमगणभगणनगणतगणतगणगुरू, गुरू
चिन्हऽऽऽऽ।।।।।ऽऽ।ऽऽ।ऽ, ऽ
द्वितीयपादशापेनातग्‍ड:मितमहिमा वर्षभोग्‍येणभर्तु:।
चिन्ह/गणऽऽऽ(मगण)ऽ।।(भगण)।।।(नगण)ऽऽ।(तगण)ऽऽ।(तगण)ऽ,ऽ(गुरू,गुरू)
तृतीयपादयक्षश्‍चक्रे जनकतनयास्‍नानपुण्‍योदकेषु
चिन्ह/गणऽऽऽ(मगण)ऽ।।(भगण)।।।(नगण)ऽऽ।(तगण)ऽऽ।(तगण)ऽ,ऽ(गुरू,गुरू)
चतुर्थपादस्निग्‍धच्‍छायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु।
चिन्ह/गणऽऽऽ(मगण)ऽ।।(भगण)।।।(नगण)ऽऽ।(तगण)ऽऽ।(तगण)ऽ,ऽ(गुरू,गुरू)
  • मन्दाक्रान्ता छन्द में आने वाले वर्ण एवं यति :-
वर्णचौथे वर्ण के बाद यतिछठे वर्ण के बाद यतिसातवें वर्ण के बाद यति
17कश्चित्‍कान्‍ताविरहगुरुणास्‍वाधिकारात्‍प्रमत:
17शापेनास्‍तग्‍ड:मितमहिमावर्षभोग्‍येण भर्तु:।
17यक्षश्‍चक्रेजनकतनयास्‍नानपुण्‍योदकेषु
17स्निग्‍धच्‍छायातरुषु वसतिंरामगिर्याश्रमेषु।।

अतः इस श्लोक के प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण भगण नगण दो तगण और अन्त में दो गुरू वर्ण हैं इस में चौथे, छठे और सातवें वर्ण के बाद यति हैं अतः इस श्लोक में मन्दाक्रान्ता छन्द का लक्षण घटित हो रहा है।


यहां भी पढ़ें
  • मन्दाकान्ता वृत्त अत्यष्टी छन्द का कोई भाग है।

सामान्य प्रश्न
मन्दाक्रान्ता छन्द का लक्षण क्या है?

मन्दाक्रान्ता छन्द का लक्षण “मन्दाक्रान्ताम्बुधिरसनगैर्मोभनौ तौ गयुग्मम्‌“।

मन्दाक्रान्ता छन्द का उदाहरण क्या है?

मन्दाक्रान्ता छन्द का उदाहरण :-
कश्चित्‍कान्‍ताविरहगुरुणा स्‍वाधिकारात्‍प्रमत:
शापेनास्‍तग्‍ड:मितमहिमा वर्षभोग्‍येण भर्तु:।
यक्षश्‍चक्रे जनकतनयास्‍नानपुण्‍योदकेषु
स्निग्‍धच्‍छायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु।।

मन्दाक्रान्ता छन्द के प्रत्येक चरण में कितने अक्षर होते हैं?

मन्दाक्रान्ता छन्द के प्रत्येक चरण में 17 अक्षर है तथा चारों चरणों (श्लोक) में 68 अक्षर होते हैं।

मन्दाक्रान्ता छन्द के प्रत्येक चरण में कौन कौन से गण आते है?

मन्दाक्रान्ता छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमश मगण भगण नगण दो तगण और अन्त में दो गुरू आते है।

मन्दाक्रान्ता छन्द में कितनी बार यति आती है 

मन्दाक्रान्ता छन्द में तीन बार यति आती है:- प्रथम बार 4 अक्षर के बाद, मध्य में 6 अक्षर के बाद और अंत में 7 अक्षर के बाद।


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