मालिनी | Malini
छन्द का नामकरण :-
- ‘मालिनी’ शब्द का अर्थ ‘माला धारण करने वाली कोई रमणी’ है।
- आपको याद होगा कि हमने स्रग्विणी छन्द को पढते समय उसके तात्पर्य को समझा था कि ‘स्रक’ अर्थात् माला और माला को धारण करने वाली स्रग्विणी।
- इस प्रकार स्रग्विणी और मालिनी इन दोनों का एक ही अभिप्राय दिखाई पड़ता है।
मालिनी छन्द परिचय :-
- मालिनी छन्द के प्रत्येक चरण में 15 अक्षर है अतः चारों चरणों 60 अक्षर है।
- इस छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमश दो नगण, एक भगण, दो यगण होते हैं (नगण,नगण,भगण,यगण,यगण)।
- यही व्यवस्था चारों चरणों में होगी क्योंकि यह समवृत्त छन्द है।
- इस छन्द में 8 एवं 7 अक्षर के बाद यति होती है।
मालिनी छन्द का लक्षण :-
- गंगादास छन्दोमंजरी तथा वृत्तरत्नाकर में मालिनी छन्द का लक्षण इस प्रकार दिया गया है :-
ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकै:।
वृत्तरत्नाकर
लक्षणार्थ:- ‘ननमयययुता‘ जिस छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमशः नगण, नगण, मगण यगण एवं यगण हो वह मालिनी छन्द के रूप में प्रसिद्ध हैं। यहां ‘भोगी’ अर्थात् भोग आठ होते हैं और ‘लोकै’ अर्थात् लोक सात होते हैं। अर्थात् इस छन्द में आठवें एवं सातवें अक्षर के बाद यति आती है।
- पिंगलाचार्य कृत ‘छन्दसूत्र’ मे इस छन्द का लक्षण इस प्रकार दिया है :-
‘मालिनी नौ म्-यौ य्’
छन्दसूत्र
लक्षणार्थ:- मालिनी छन्द में दो नगण एक मगण और अन्त में दो यगण हाते हैं।
मालिनी छन्द का उदाहरण :-
सरसिजमनुविद्धं शैवलेनापि रम्यं
अभिज्ञानशाकुन्तलम् 1.20
मलिनमपि हिमांशोर्लक्ष्म लक्ष्मीं तनोति।
इयमधिकमनोज्ञा वल्कलेनापि तन्वी
किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम्।।
कमल यद्यपि शिवाल में लिपटा है, फिर भी सुन्दर है। चन्द्रमा का कलंक, यद्यपि काला है, किन्तु उसकी सुन्दरता बढ़ाता है। ये जो सुकुमार कन्या है, इसने यद्यपि वल्कल-वस्त्र धारण किए हुए हैं तथापि वह और सुन्दर दिखाई दे रही है। क्योंकि सुन्दर रूपों को क्या सुशोभित नहीं कर सकता ?’
उदाहरण विश्लेषण :-
- मालिनी छन्द में आने वाले गण एवं उनके चिन्ह :-
नगण नगण मगण यगण यगण
।।। ।।। ऽऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ
प्रथमपाद | सरसि | जमनु | विद्धं शै | वलेना | पि रम्यं |
गण | नगण | नगण | मगण | यगण | यगण |
चिन्ह | ।।। | ।।। | ऽऽऽ | ।ऽऽ | ।ऽऽ |
द्वितीयपाद | मलिन | मपि हि | मांशोर्ल | क्ष्म लक्ष्मीं | तनोति। |
चिन्ह/गण | ।।।(नगण) | ।।।(नगण) | ऽऽऽ(मगण) | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) |
तृतीयपाद | इयम | धिकम | नोज्ञा व | ल्कलेना | पि तन्वी |
चिन्ह/गण | ।।।(नगण) | ।।।(नगण) | ऽऽऽ(मगण) | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) |
चतुर्थपाद | किमिव | हि मधु | राणां म | ण्डनं ना | कृतीनाम्। |
चिन्ह/गण | ।।।(नगण) | ।।।(नगण) | ऽऽऽ(मगण) | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) |
- मालिनी छन्द में आने वाले वर्ण एवं यति :-
वर्ण | आठवें वर्ण के बाद यति | सातवें वर्ण के बाद (अन्त में) यति |
15 | सरसिजमनुविद्धं | शैवलेनापि रम्यं |
15 | मलिनमपि हिमांशो | र्लक्ष्म लक्ष्मीं तनोति। |
15 | इयमधिकमनोज्ञा | वल्कलेनापि तन्वी |
15 | किमिव हि मधुराणां | मण्डनं नाकृतीनाम्।। |
अतः इस श्लोक के प्रत्येक चरण में 15 वर्ण है जिनमें क्रमश दो नगण, एक भगण, दो यगण है। मध्य यति 8 वर्ण के बाद और अन्तिम यति 7 वर्ण के बाद है यह लक्षण चारों चरणों में विद्यमान होने से मालिनी का लक्षण घटित होता है।
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- अब प्रश्न उठता है कि ‘भोगिलोकैः’ का अर्थ क्या है:- आचार्यों ने कहा कि पहली यति भोगी के बाद इसमें भोगी का अर्थ होता है सर्प या नाग क्योंकि वह भोग कहते है साँप की कुड़ली को और उस भोग से युक्त होने के कारण इसका एक नाम है ‘भोगि’।
- हमारे पुराणों में बताया गया है जो प्रजापति महर्षि कश्यप थे उनकी पत्नी के गर्भ के आठ नाग पैदा हुए।
- उनमें से सबसे बड़ा शेषनाग, छोटा भाई अनन्त, तीसरा भाई वासु और उसी के अन्य भाईयों में करकोटक आर्यक एवं तक्षक थे। चूँकि नाग आठ भाई थे इसलिए छन्द शास्त्र में संख्या को सीधे-सीधे न कह करके संख्या वाची ‘भोगि’ शब्द के माध्यम से कहा जाता है अर्थात् पहला विराम भोगि अर्थात् आठवें अक्षर के बाद आयेगा।
- इसके पश्चात् दूसरा विराम लोक शब्द के पश्चात् अर्थात् सात अक्षरों के बाद आयेगा क्योंकि हमारे पुराणों में सात लोकों की बात की गयी है। इस प्रकार प्रथम यति आठ अक्षर के बाद और दूसरी यति सात अक्षर के बाद आयेगी।
सामान्य प्रश्न
मालिनी छन्द का लक्षण “ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकै:“।
मालिनी छन्द का उदाहरण :-
“सरसिजमनुविद्धं शैवलेनापि रम्यं
मलिनमपि हिमांशोर्लक्ष्म लक्ष्मीं तनोति।
इयमधिकमनोज्ञा वल्कलेनापि तन्वी
किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम्।।“
मालिनी छन्द के प्रत्येक चरण में 15 अक्षर है तथा चारों चरणों (श्लोक) में 60 अक्षर होते हैं।
मालिनी छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमश दो नगण, एक भगण, दो यगण आते है।
मालिनी छन्द में दो बार यति आती है:- प्रथम बार 8 अक्षर के बाद और अंत में 7 अक्षर के बाद।