भुजंगप्रयात | Bhujangprayat
छन्द का नामकरण :-
- हमारे आचार्यों ने प्रत्येक छन्द के भीतर विद्यमान जो सूक्ष्म विशेषताएँ हैं उनके आधार पर नामकरण किया है।
- क्योंकि यदि आप नाम के रहस्य को जानते है तो उस छन्द का सम्पूर्ण स्वरुप मानसिक पटल पर उपस्थित हो जाता है।
- ‘भुजंगप्रयात’ में ‘भुजंग’ का अर्थ होता है ‘सर्प’ और ‘प्रयातम्’ का अर्थ होता है ‘गति’ अर्थात् कहने का आशय है साँप की गति वाला।
- क्योंकि साँप के पैर तो होते नहीं वह आगे बढ़ने के लिये पहले अपने शरीर को मोडता है और फिर मोडे हुए कुण्डली को फैलाकर फिर आगे की ओर बढ़ जाता है। इसी कुण्डली को भुज कहते हैं इसलिये भुजंग का मतलब होता है- ‘भुजेन गच्छति इति भुजङ्गः’ अर्थात् जो अपनी कुंडली के बल पर आगे बढ़ता है उसी को भुजंग कहते हैं।
- भुजंग की जो गति है उसे प्रयात कहते है- ‘भुजङ्गस्य प्रयातम् इव प्रपातं यस्य तत् भुजङ्गप्रयातम्’ संस्कृत में इस प्रकार की व्याख्या हुई है। कहने का आशय यह है कि सर्प की चाल की तरह जिस छन्द की चाल होती है उस छन्द को ‘भुजंग प्रयात’ कहते हैं।
- क्योंकि ये भी साँप की तरह सर्पट आगे बढ़ता है। इस छन्द के प्रत्येक चरण में आने वाले जो चरण की गति है उसे अक्षर मैत्री कहते हैं। प्रत्येक अक्षर की एक दूसरे अक्षर के साथ मैत्री होती है।
भुजंगप्रयात छन्द परिचय :-
- भुजंगप्रयात छन्द के प्रत्येक पाद में 12 वर्ण हैं और चारों चरणों में कुल 48 वर्ण होते हैं।
- यह जगती का ही कोई भाग है। इस छन्द के प्रत्येक चरण में चार यगण होते हैं (यगण,यगण,यगण,यगण)।
- यही व्यवस्था चारों चरणों में होगी क्योंकि यह समवृत्त छन्द है।
- इस छन्द के पाद के अन्त में यति होती है। यह वर्णिक छन्द है।
भुजंगप्रयात छन्द का लक्षण :-
- गंगादास छन्दोमंजरी में भुजंगप्रयात छन्द का लक्षण इस प्रकार दिया गया है:-
‘भुजङ्गप्रयातं चतुर्भिर्यकारैः’
छन्दोमंजरी
लक्षणार्थ:- जिस छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमशः चार यगण हों, उसे भुजंगप्रयात छन्द कहते हैं।
- केदारभट्ट कृत वृत्तरत्नाकर में भुजंगप्रयात छन्द का लक्षण इस प्रकार से प्राप्त होता है:-
भुजङ्गप्रयातं भवेद्यैश्चतुर्भिः
वृत्तरत्नाकर
लक्षणार्थ:- भुजंगप्रयात छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमशः चार यगण तथा पादान्त यति होता है।
- छन्दसूत्र में इस छन्द का लक्षण इस प्रकार प्राप्त होता है:-
‘भुजङ्गप्रयातं यः’
छन्दसूत्र
लक्षणार्थ:- इस छन्द के प्रत्येक पाद में क्रमशः चार यगण प्राप्त होते हैं।
भुजंगप्रयात छन्द का उदाहरण :-
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्
हे मोक्ष स्वरुप, विभु, व्यापक, ब्रह्म और वेद स्वरुप, ईशान दिशा के ईश्वर तथा सब के स्वामी श्री शिव जी, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निजस्वरूप में स्थित (अर्थात माया आदि से रहित), गुणों से रहित, भेदरहित, इच्छारहित, चेतन आकाश एवं आकाश को ही वस्त्र के रूप में धारण करने वाले दिगंबर [ अथवा आकाश को भी आच्छादित करने वाले ] आपको मैं भजता हूँ ।।
उदाहरण विश्लेषण :-
- भुजंगप्रयात छन्द में आने वाले गण एवं उनके चिन्ह :-
यगण यगण यगण यगण
।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ
प्रथमपाद | नमामी | शमीशा | न निर्वा | णरूपं |
गण | यगण | यगण | यगण | यगण |
चिन्ह | ।ऽऽ | ।ऽऽ | ।ऽऽ | ।ऽऽ |
द्वितीयपाद | विभुं व्या | पकं ब्र | ह्मवेद | स्वरूपम्। |
चिन्ह/गण | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) |
तृतीयपाद | निजं नि | र्गुणं नि | र्विकल्पं | निरीहं |
चिन्ह/गण | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) |
चतुर्थपाद | चिदाका | शमाका | शवासं | भजेऽहम्। |
चिन्ह/गण | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) | ।ऽऽ(यगण) |
अतः इस श्लोक के प्रत्येक चरण में चार यगण वर्ण हैं और पाद के अन्त में यति हैं अतः इस श्लोक में भुजंगप्रयात छन्द का लक्षण घटित हो रहा है।
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- इसमें अक्षरों की योजना भागते हुए सर्प जैसी है। जिस प्रकार भागते हुए सर्प को रोकना मुश्किल होता है उसी प्रकार इस छन्द को पढ़ते समय इतनी तीव्र गति होती है कि बीच में आप पाठक को रोक नहीं सकते हैं। इसके गायन में प्रवाह है।
- काव्यमार्ग में यह अत्यन्त लोकप्रिय हैं क्योंकि इस वृत से श्लोक रचना अत्यन्त सरल होती है। इसमें समगण होते हैं। अतएव सुनने में मधुरता की अनुभूति होती है।
- भुजंगप्रयात स्त्रोत साहित्य या भक्ति साहित्य में बहुत लोकप्रिय है। जितने भी देवताओं की स्तुतियाँ भगवान शंकराचार्य और प्राचीन आचार्यों ने की है वे प्रायः भुजंगप्रयात में की है उदाहरण स्वरूप आदि शकराचार्य का भवानी अष्टक में भवानी की जो वन्दना की है वह भुजंगप्रयात में ही है। इन्होंने भगवती गंगा की जो स्तुति की है वह भी भुजंगप्रयात में है।
सामान्य प्रश्न
भुजंगप्रयात छन्द का लक्षण “भुजङ्गप्रयातं चतुर्भिर्यकारैः“।
भुजंगप्रयात छन्द का उदाहरण :-
“नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्“
भुजंगप्रयात छन्द के प्रत्येक चरण में 12 अक्षर है तथा चारों चरणों (श्लोक) में 48 अक्षर होते हैं।
भुजंगप्रयात छन्द के प्रत्येक चरण में चार यगण आते है।