आर्या | Aarya
आर्या छन्द परिचय :-
- आर्या छन्द के पहले और तीसरे पाद में 12-12 मात्राएँ और दूसरे चरण में 18 मात्राएँ तथा चौथे चरण में 15 मात्राएँ होती है।
- आर्या छन्द में कुल 57 मात्रा होती है।
- आर्या छन्द के 9 भेद प्राप्त होते हैं।
- मात्रिक छन्दों में आर्या सबसे प्रमुख है।
- यह मात्रिक छन्द है अर्थात् मात्राओं की गणना होती है। प्रत्येक गण में चार मात्राएं होती है।
आर्या छन्द का लक्षण :-
- श्रुतबोध में आर्या नामक छन्द का लक्षण इस प्रकार दिया है:-
यस्याः पादे प्रथमे द्वादश मात्रास्तथा तृतीयेऽपि ।
छन्दोमंजरी
अष्टादश द्वितीये चतुर्थके पंचदश सार्या ।।
लक्षणार्थ:- जिस छन्द के पहले और तीसरे पाद में 12-12 मात्राएँ हो और दूसरे चरण में 18 मात्राएँ तथा चौथे चरण में 15 मात्राएँ हो तो वह आर्या छन्द होता है।
आर्या छन्द का उदाहरण :-
आ परितोषाद्विदुषां
अभिज्ञानशाकुन्त ॥१.०२॥
न साधु मन्ये प्रयोगविज्ञानम् ।
बलवदपि शिक्षितानाम्
आत्मन्यप्रत्ययं चेतः
जब तक विद्वानों को पूर्ण संतुष्टि न हो जाए तब तक मैं अपने नाट्याभिनय (अभीष्टकार्य) के विशिष्टज्ञान को सब तरह से सफल नहीं मानता। क्योंकि नाट्यकला में विशेष योग्यता प्राप्त विद्वानों का भी मन अपने विषय में अविश्वासी (विश्वास न करने वाला) होता है।
उदाहरण विश्लेषण :-
प्रथमपाद | आ | प | रि | तो | षा | द्वि | दु | षां |
12 मात्राएँ | ऽ | । | । | ऽ | ऽ | । | । | ऽ |
द्वितीयपाद | न | सा | धु | म | न्ये | प्र | यो | ग | वि | ज्ञा | नम्। |
18 मात्राएँ | । | ऽ | । | ऽ | ऽ | । | ऽ | । | ऽ | ऽ | ऽ |
तृतीयपाद | ब | ल | व | द | पि | शि | क्षि | ता | नाम् |
12 मात्राएँ | । | । | । | । | । | ऽ | । | ऽ | ऽ |
चतुर्थपाद | आ | त्म | न्य | प्र | त्य | यं | चे | तः |
15 मात्राएँ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | । | ऽ | ऽ | ऽ |
अतः इस श्लोक के पहले और तीसरे पाद में 12-12 मात्राएँ और दूसरे चरण में 18 मात्राएँ तथा चौथे चरण में 15 मात्राएँ होने से वसन्ततिलका का लक्षण घटित होता है।
यहां भी पढ़ें
- मात्रिक छन्द में मात्राओं की गणना की जाती है प्रत्येक गण में चार मात्राएं होती हैं इस छन्द में मात्रा का अधिक महत्व दिखाई देता हैं यहाँ अक्षर या वर्णों की गणना नहीं होती है।
- आर्या नाम मात्रिक छन्द में महाकवियों ने सामान्य रुप से ‘प्रेम’ भाव के प्रकाशन के लिये उपयुक्त माना है। आगे चलकर ‘आर्या’ लोक संस्कृति का छन्द बना, जिसमें प्रेम सम्बन्धी भावनाओं का प्रकाशन दिखायी देता हैं।
- महाकवि कालिदास अभिज्ञानशाकुन्तलम् के तृतीय अंक तक प्रेम सम्बन्धी भावनाओं को प्रकाशित करने के लिये ‘आर्या’ का ही आश्रय लिया है।
- आर्या छन्द के नव भेद:-
पथ्या विपुला चपला मुखचपला जघनचपला च।
गीत्युपगीत्युद्गीतय आर्यागीतिश्च नवधाऽऽर्या॥
(1) पथ्या (2) विपुला (3) चपला (4) मुखचपला (5) जघनचपला (6) गीति (7) उपगीति (8) उद्गीति (१) आर्यागीति।
सामान्य प्रश्न
आर्या छन्द का लक्षण “यस्याः पादे प्रथमे द्वादश मात्रास्तथा तृतीयेऽपि।
अष्टादश द्वितीये चतुर्थके पंचदश सार्या।।“।
आर्या छन्द का उदाहरण :-
“आ परितोषाद्विदुषां
न साधु मन्ये प्रयोगविज्ञानम्।
बलवदपि शिक्षितानाम्
आत्मन्यप्रत्ययं चेतः॥ “
आर्या छन्द के पहले और तीसरे पाद में 12-12 मात्राएँ और दूसरे चरण में 18 मात्राएँ तथा चौथे चरण में 15 मात्राएँ होती है। आर्या छन्द में कुल 57 मात्राएँ होती है।