Bhagavad Gita Chapter 6 Shloka 6 | श्रीमद्भगवद्गीता

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श्रीमद् भगवद् गीता षष्ठ अध्याय ध्यानयोग

बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जित: |
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्ते तात्मैव शत्रुवत् || ६ ||

bandhur ātmātmanas tasya yenātmaivātmanā jitaḥ
anātmanas tu śhatrutve vartetātmaiva śhatru-vat

Hindi Translation:- जिस जीवात्मा द्वारा मन और इन्द्रियों सहित शरीर जीता हुआ है, उस जीवात्मा का तो वह आप ही मित्र है, और जिसके द्वारा मन तथा इन्द्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है, उसके लिये वह आप ही शत्रु के सदृश शत्रुता में बर्तता है।

English Translation:- The true self (soul) is only its own friend if it is free from attachment and in control of its own mind, body and senses. However, dear Arjuna, if one’s soul is not in control of mind body and senses, then the soul is its own enemy.


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