श्रीमद् भगवद् गीता षष्ठ अध्याय ध्यानयोग
श्रीभगवानुवाच
अनाश्रित: कर्मफलं कार्यं कर्म करोति य: |
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय: || १ ||
śhrī bhagavān uvācha
anāśhritaḥ karma-phalaṁ kāryaṁ karma karoti yaḥ
sa sannyāsī cha yogī cha na niragnir na chākriyaḥ
Hindi Translation:- श्रीभगवान् बोले -: जो पुरुष कर्म का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है और केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योगी नहीं है।
English Translation:- Lord Krishna continued -: A Sannyaasi is one who performs action or duty (Karma) without desiring any reward or other results for his actions. One cannot be a Sannyaasi or a Yogi by simply not petorming Karma.
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