श्रीमद् भगवद् गीता पंचम अध्याय कर्मसंन्यासयोग
योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रिय: |
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते || ७ ||
yoga-yukto viśhuddhātmā vijitātmā jitendriyaḥ
sarva-bhūtātma-bhūtātmā kurvann api na lipyate
Hindi Translation:- जिसका मन अपने वश में है, जो जितेन्द्रिय एवं विशुद्भ अन्त:करण वाला है और सम्पूर्ण प्राणियों का आत्मरूप परमात्मा ही जिसका आत्मा है, ऐसा कर्म योगी कर्म करता हुआ भी लिप्त नहीं होता।
English Translation:- The Lord spoke onwards -: The Karmyogi is a purified being who has conquered the self. He does not centre his life around himself but around the achievement of being one with God. He detaches himself from his senses, centering all his thoughts on God and achieving everlasting peace and happiness by breaking free of all material bondage to the world.
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