श्रीमद् भगवद् गीता पंचम अध्याय कर्मसंन्यासयोग
यत्साङ्ख्यै: प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते |
एकं साङ्ख्यं च योगं च य: पश्यति स पश्यति || ५ ||
yat sānkhyaiḥ prāpyate sthānaṁ tad yogair api gamyate
ekaṁ sānkhyaṁ cha yogaṁ cha yaḥ paśhyati sa paśhyati
Hindi Translation:- ज्ञान योगियों द्वारा जो परम धाम प्राप्त किया जाता है, कर्मयोगियों द्वारा भी वही प्राप्त किया जाता है । इसलिये जो पुरुष ज्ञान योग और कर्म योग को फलरूप में एक देखता है, वही यथार्थ देखता है।
English Translation:- Yoga or Sannyaas (together known as Sankyoga) both attain the same goal for he who follows either of these paths. Only he who considers Yoga and Sannyaas as one, sees the ultimate Truth (the Lord).
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