श्रीमद् भगवद् गीता पंचम अध्याय कर्मसंन्यासयोग
साङ्ख्ययोगौ पृथग्बाला: प्रवदन्ति न पण्डिता: |
एकमप्यास्थित: सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् || ४ ||
sānkhya-yogau pṛithag bālāḥ pravadanti na paṇḍitāḥ
ekamapyāsthitaḥ samyag ubhayor vindate phalam
Hindi Translation:- उपर्युक्त्त संन्यास और कर्मयोग को मूर्ख लोग पृथक्-पृथक् फल देने वाले कहते हैं न कि पण्डितजन ; क्योंकि दोनों में से एक में भी सम्यक् प्रकार से स्थित पुरुष दोनों के फलरूप परमात्मा को प्राप्त होता है।
English Translation:- Oh Arjuna, in essense, Yoga and Sannyaas are the same because both of these achieve the same goal. Those who consider Yoga and Sannyaas as two different paths leading to the achievement of two different goals, are ignorant. When one is fully absorbed and established in either one of Yoga or Sannyaas, he achieves the results of both of these sacred institutions.
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