Bhagavad Gita Chapter 4 Shloka 31 | श्रीमद्भगवद्गीता

0
7565
Bhagavad Gita Chapter 4 Shloka image

श्रीमद् भगवद् गीता चतुर्थ अध्याय ज्ञानकर्मसंन्यासयोग

यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम् |
नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्य: कुरुसत्तम || ३१
||

yajña-śhiṣhṭāmṛita-bhujo yānti brahma sanātanam
nāyaṁ loko ’styayajñasya kuto ’nyaḥ kuru-sattama

Hindi Translation:- हे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन ! यज्ञ से बचे हुए अमृत का अनुभव करने वाले योगी जन सनातन परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं और यज्ञ न करने वाले पुरुष के लिये तो यह मनुष्य लोक भी सुखदायक नहीं है, फिर परलोक कैसे सुखदायक हो सकता है।

English Translation:- O Arjuna, only those people who have sacrificed to achieve wisdom and knowledge of Gyan, go to Brahma, (the creator of all beings and God of Wisdom in the World). Without performing some sort of sacrifice in life, one cannot possibly remain happy in this world, not to mention the afterworld.


Random Posts

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here