श्रीमद् भगवद् गीता चतुर्थ अध्याय ज्ञानकर्मसंन्यासयोग
सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे |
आत्मसंयमयोगाग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते || २७ ||
sarvāṇīndriya-karmāṇi prāṇa-karmāṇi chāpare
ātma-sanyama-yogāgnau juhvati jñāna-dīpite
Hindi Translation:- दूसरे योगी जन इन्द्रियों की सम्पूर्ण क्रियाओं को और प्राणों की समस्त क्रियाओं को ज्ञान से प्रकाशित आत्म संयम योग रूप अग्नि में हवन किया करते हैं।
English Translation:- Some Yogis sacrifice all the functions of their senses ans all their vital functions of life, into the fire of Yoga, in the shape of self control, which is kindled by Gyan (wisdom). (This signifies the sacrificer’s one-mindedness with the Lord, the Supreme Goal).
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