श्रीमद् भगवद् गीता चतुर्थ अध्याय ज्ञानकर्मसंन्यासयोग
श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति |
शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति || २६ ||
śhrotrādīnīndriyāṇyanye sanyamāgniṣhu juhvati
śhabdādīn viṣhayānanya indriyāgniṣhu juhvati
Hindi Translation:- अन्य योगी जन श्रोत्र आदि समस्त इन्द्रियों को संयम रूप अग्नियों में हवन किया करते हैं और दूसरे योगी लोग शब्दादि समस्त विषयों का इन्द्रिय रूप अग्नियों में हवन किया करते हैं।
English Translation:- Some offer, in the fire of self-control, one of their senses such as their hearing. (This signifies that the signifies has no attachment to any of his senses.) Others offer sensual objects (objects of perception), such as sound, in the fire of controlled senses. Signifying that the sacrificer has the will-power and restraint not to let his senses be influenced by evil, sin, or sensual objects of destruction.
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