श्रीमद् भगवद् गीता चतुर्थ अध्याय ज्ञानकर्मसंन्यासयोग
निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रह: |
शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम् || २१ ||
nirāśhīr yata-chittātmā tyakta-sarva-parigrahaḥ
śhārīraṁ kevalaṁ karma kurvan nāpnoti kilbiṣham
Hindi Translation:- जिसका अन्त:करण और इन्द्रियों के सहित शरीर जीता हुआ है और जिसने समस्त भोगों की सामग्री का परित्याग कर दिया है, ऐसा आशा रहित पुरुष केवल शरीर सम्बन्धी कर्म करता हुआ भी पापों को नहीं प्राप्त होता।
English Translation:- That person, O Arjuna, who has conquered his body and mind, who has given up all enjoyments and pleasures of the world, and who performs action only for the sake of maintaining his body, does not encounter or subiect himself to sin.
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