श्रीमद् भगवद् गीता चतुर्थ अध्याय ज्ञानकर्मसंन्यासयोग
यस्य सर्वे समारम्भा: कामसङ्कल्पवर्जिता: |
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहु: पण्डितं बुधा: || १९ ||
yasya sarve samārambhāḥ kāma-saṅkalpa-varjitāḥ
jñānāgni-dagdha-karmāṇaṁ tam āhuḥ paṇḍitaṁ budhāḥ
Hindi Translation:- जिसके सम्पूर्ण शास्त्र सम्मत कर्म बिना कामना और संकल्प के होते हैं तथा जिसके समस्त कर्म ज्ञान रूप अग्नि के द्वारा भस्म हो गये हैं, उस महापुरुष को ज्ञानी जन भी पण्डित कहते हैं।
English Translation:- One who does all Karma without desire or attachment for the fruits of his Karma and one whose actions are burnt up in the of Gyan or wisdom, is regarded by even the wise men as a sage.
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