श्रीमद् भगवद् गीता तृतीय अध्याय कर्मयोग
इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ |
तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ || ३४ ||
indriyasyendriyasyārthe rāga-dveṣhau vyavasthitau
tayor na vaśham āgachchhet tau hyasya paripanthinau
Hindi Translation:- इन्द्रिय-इन्द्रिय के अर्थ में अर्थात् प्रत्येक इन्द्रिय के विषय में राग और द्बेष छिपे हुए स्थित हैं। मनुष्य को उन दोनों के वश में नहीं होना चाहिये; क्योंकि वे दोनों ही इसके कल्याण मार्ग में विघ्न करने वाले महान् शत्रु हैं।
English Translation:- The Divine Lord stated -: The enjoyment of sensual objects by their senses (an example of human nature) creates barriers to the path of Bliss and peace if one becomes a victim of attachment to his sesses.
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