श्रीमद् भगवद् गीता तृतीय अध्याय कर्मयोग
एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह य: |
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति || १६ ||
evaṁ pravartitaṁ chakraṁ nānuvartayatīha yaḥ
aghāyur indriyārāmo moghaṁ pārtha sa jīvati
Hindi Translation:- हे पार्थ ! जो पुरुष इस लोक में इस प्रकार परम्परा से प्रचलित सृष्टि चक्र के अनुकूल नहीं बरतता अर्थात् अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता वह इन्द्रियों के द्वारा भोगों में रमण करने वाला पापायु पुरुष व्यर्थ ही जीता है।
English Translation:- The Blessed Lord said -: O Arjuna, he who does not follow the proper course of creation such as that I have just described, but centres his life around the enjoyment of luxuries, this sinful person, in my eyes, leads a useless life. He shall never fully understand and realize me.
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