श्रीमद् भगवद् गीता द्वितीय अध्याय सांख्ययोग
एषा ब्राह्मी स्थिति: पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति |
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति || ७२ ||
eṣhā brāhmī sthitiḥ pārtha naināṁ prāpya vimuhyati
sthitvāsyām anta-kāle ’pi brahma-nirvāṇam ṛichchhati
Hindi Translation:- हे अर्जुन ! यह ब्रह्म को प्राप्त हुए पुरुष की स्थिति है, इसको प्राप्त होकर योगी कभी मोहित नहीं होता और अन्तकाल में भी इस ब्राह्मी स्थिति में स्थित होकर ब्रह्मानन्द को प्राप्त हो जाता है।
English Translation:- The Blessed Lord spoke -: O ARJUNA, this is the state of a person who has truly realized God. After obtaining Supreme Bliss by realizing God, this person cannot be deceived by any of life’s evils. Until the time of death one remains firm in this state and ultimately achieves Supremr Peace and tranquility.
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