श्रीमद् भगवद् गीता द्वितीय अध्याय सांख्ययोग
आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं
समुद्रमाप: प्रविशन्ति यद्वत् |
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे
स शान्तिमाप्नोति न कामकामी || ७० ||
āpūryamāṇam achala-pratiṣhṭhaṁ
samudram āpaḥ praviśhanti yadvat
tadvat kāmā yaṁ praviśhanti sarve
sa śhāntim āpnoti na kāma-kāmī
Hindi Translation:- जैसे नाना नदियों के जल सब ओर से परिपूर्ण अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं, वैसे ही सब भोग जिस स्थित प्रज्ञ पुरुष में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न किये बिना ही समा जाते हैं, वही पुरुष परम शान्ति को प्राप्त होता है, भोगों को चाहने वाला नहीं।
English Translation:- As the river enters the ocean without affecting the ocean or disturbing it, so the desires enter the person who has obtained Supreme peace, but not the person who is already filled with desires and wants more and more.
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