श्रीमद् भगवद् गीता द्वितीय अध्याय सांख्ययोग
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना |
न चाभावयत: शान्तिरशान्तस्य कुत: सुखम् || ६६ ||
nāsti buddhir-ayuktasya na chāyuktasya bhāvanā
na chābhāvayataḥ śhāntir aśhāntasya kutaḥ sukham
Hindi Translation:- न जीते हुए मन और इन्द्रियों वाले पुरुष में निश्चयात्मिका बुद्भि नहीं होती और उस अयुक्त्त मनुष्य के अन्त:करण में भावना भी नहीं होती तथा भावनाहीन मनुष्यों को शान्ति नहीं मिलती और शान्ति रहित मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है।
English Translation:- One who cannot control his senses is one who is lacking in steady wisdom and intelligence, and also lacks proper feelings or sentiments (thoughts). A person who cannot think properly and make decisions with a clear mind, cannot have peace of mind, and without peace of mind there can be no happiness.
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