Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 58 | श्रीमद्भगवद्गीता

0
8128
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka image

श्रीमद् भगवद् गीता द्वितीय अध्याय सांख्ययोग

यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वश: |
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || ५८
||

yadā sanharate chāyaṁ kūrmo ’ṅgānīva sarvaśhaḥ
indriyāṇīndriyārthebhyas tasya prajñā pratiṣhṭhitā

Hindi Translation:- और कछुआ सब ओर से अपने अंगो को जैसे समेट लेता है, वैसे ही जब यह पुरुष इन्द्रियों के विषयों से इन्द्रियों को सब प्रकार से हटा लेता है, तब उसकी बुद्भि स्थिर है ( ऐसा समझना चाहिये )।

English Translation:- Just as a tortoise withdraws or retreats its limbs into its shell, a person with a firm mind and decisive intellect can withdraw his senses from sensual objects.


Random Posts

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here