श्रीमद् भगवद् गीता द्वितीय अध्याय सांख्ययोग
श्रीभगवानुवाच
प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् |
आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते || ५५ ||
śhrī bhagavān uvācha
prajahāti yadā kāmān sarvān pārtha mano-gatān
ātmany-evātmanā tuṣhṭaḥ sthita-prajñas tadochyate
Hindi Translation:- श्री भगवान् बोले :- हे अर्जुन! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भली भांति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उस काल में वह स्थित प्रज्ञ कहा जाता है।
English Translation:- The Divine Lord Krishna replied :- O ARJUNA, one is said to have steady wisdom if he completely frees himself from desires of the mind and heart and is realistically satisfied within himself, no more having the longing for material pleasures.
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