श्रीमद् भगवद् गीता षष्ठ अध्याय ध्यानयोग
योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थित: |
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रह: || १० ||
yogī yuñjīta satatam ātmānaṁ rahasi sthitaḥ
ekākī yata-chittātmā nirāśhīr aparigrahaḥ
Hindi Translation:- मन और इन्द्रियों सहित शरीर को वश में रखने वाला, आशा रहित और संग्रह रहित योगी अकेला ही एकान्त स्थान में स्थित होकर आत्मा को निरन्तर परमात्मा में लगावे।
English Translation:- The Lord proclaimed -: A Yogi who is free of all desires and greed, who has controlled his mind, body and senses, should sit alone and engage himself only in concentrating his thoughts on Me (meditation).
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