श्रीमद् भगवद् गीता षष्ठ अध्याय ध्यानयोग
ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रिय: |
युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चन: || ८ ||
jñāna-vijñāna-tṛiptātmā kūṭa-stho vijitendriyaḥ
yukta ityuchyate yogī sama-loṣhṭāśhma-kāñchanaḥ
Hindi Translation:- जिसका अन्त:करण ज्ञान-विज्ञान से तृप्त है, जिसकी स्थिति विकार रहित है, जिसकी इन्द्रियाँ भली भाँति जीती हुई हैं और जिसके लिये मिट्टी, पत्थर और सुवर्ण समान हैं, वह योगी युक्त्त अर्थात् भगवत्प्राप्त है, ऐसे कहा जाता है।
English Translation:- The Lord explained -: When one’s mind is at peace and fully contented with the Gyan (Knowledge or wisdom) it has acquired, one whose mind is constantly stable and fixed in God, who has controlled his senses well and considers dirt, stone and gold as one, is said to have achieved unity with God. He is the perfect Yogi, O Arjuna.
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