श्रीमद् भगवद् गीता पंचम अध्याय कर्मसंन्यासयोग
बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम् |
स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते || २१ ||
bāhya-sparśheṣhvasaktātmā vindatyātmani yat sukham
sa brahma-yoga-yuktātmā sukham akṣhayam aśhnute
Hindi Translation:- बाहर के विषयों में आसक्त्ति रहित अन्त:करण वाला साधक आत्मा में स्थित जो ध्यान जनित सात्त्विक आनन्द है, उसको प्राप्त होता है ; तदनन्तर वह सच्चिदानन्दधन परब्रह्म परमात्मा के ध्यान रूप योग में अभिन्न भाव से स्थित पुरुष अक्षय आनन्द का अनुभव करता है।
English Translation:- O Arjuna, a person who has totally detached himself from the material world and is happy and satisfied within his own self, attains eternal peace. When a person is truly established in the Yoga of God (service, devotion and prayers to Him), he experiences true, eternal bliss without a doubt, O Arjuna.
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