श्रीमद् भगवद् गीता पंचम अध्याय कर्मसंन्यासयोग
युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् |
अयुक्त: कामकारेण फले सक्तो निबध्यते || १२ ||
yuktaḥ karma-phalaṁ tyaktvā śhāntim āpnoti naiṣhṭhikīm
ayuktaḥ kāma-kāreṇa phale sakto nibadhyate
Hindi Translation:- कर्म योगी कर्म के फल का त्याग करके भगवत्प्राप्ति रूप शान्ति को प्राप्त होता है और सकाम पुरुष कामना की प्रेरणा से फल में आसक्त्त होकर बँधता है।
English Translation:- When a Yogi has reached a state of true self-realization by leaving all fruits and results of Karma in the hands of the Lord, he achieves true peace and happiness. However, he who does Karma (actions) for a selfish motive and for the attainment of fruits of his actions, never becomes free of the bondages of desire for material pleasures.
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