श्रीमद् भगवद् गीता पंचम अध्याय कर्मसंन्यासयोग
नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्ववित् |पश्यञ्शृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपञ्श्वसन् || ८ ||
प्रलपन्विसृजन्गृह्ण्न्नुन्मिषन्निमिषन्नपि |
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् || ९ ||
naiva kiñchit karomīti yukto manyeta tattva-vit
paśhyañ śhṛiṇvan spṛiśhañjighrann aśhnangachchhan svapañśhvasan
pralapan visṛijan gṛihṇann unmiṣhan nimiṣhann api
indriyāṇīndriyārtheṣhu vartanta iti dhārayan
Hindi Translation:- तत्त्व को जानने वाला सांख्य योगी तो देखता हुआ, सुनता हुआ, स्पर्श करता हुआ; सूंघता हुआ, भोजन करता हुआ, गमन करता हुआ, सोता हुआ, श्वास लेता हुआ, बोलता हुआ, त्यागता हुआ, ग्रहण करता हुआ तथा आँखों को खोलता और मूंदता हुआ भी, सब इन्द्रियां अपने-अपने अर्थों में बरत रही हैं – इस प्रकार समझ कर नि:संदेह ऐसा माने कि मैं कुछ भी नहीं करता हूँ।
English Translation:- He who comes to the realization that, although he is physically performing actions such as seeing, hearing, touching, smelling, eating, walking, sleeping, breathing, speaking, receiving, sacrificing, opening and closing eyes, and so on, that he is actually doing nothing, is a Yogi. O Arjuna, the truly wise Yogi knows that in reality, only the senses are acting among their sense objects.
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