Bhagavad Gita Chapter 4 Shloka 23 | श्रीमद्भगवद्गीता

0
7675
Bhagavad Gita Chapter 4 image

श्रीमद् भगवद् गीता चतुर्थ अध्याय ज्ञानकर्मसंन्यासयोग

गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतस: |
यज्ञायाचरत: कर्म समग्रं प्रविलीयते || २३
||

gata-saṅgasya muktasya jñānāvasthita-chetasaḥ
yajñāyācharataḥ karma samagraṁ pravilīyate

Hindi Translation:- जिसकी आसक्त्ति सर्वथा नष्ट हो गयी है, जो देहाभिमान और ममता से रहित हो गया है, जिसका चित्त निरन्तर परमात्मा के ज्ञान में स्थित रहता है – ऐसा केवल यज्ञ सम्पादन के लिये कर्म करने वाले मनुष्य के सम्पूर्ण कर्म भली भाँति विलीन हो जाते हैं।

English Translation:- Lord Krishna continued -: A person who has no attachment to anything whatsoever in this world, whose heart is set on acquiring Gyan (wisdom), who works for the sake of sacrifice, and is a totally liberated person from the world, all actions for this person melt away and are meaningless.


Random Posts

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here