श्रीमद् भगवद् गीता तृतीय अध्याय कर्मयोग
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम् |
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्त: समाचरन् || २६ ||
na buddhi-bhedaṁ janayed ajñānāṁ karma-saṅginām
joṣhayet sarva-karmāṇi vidvān yuktaḥ samācharan
Hindi Translation:- परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिये कि वह शास्त्र विहित कर्मों में आसक्त्ति वाले अज्ञानियों की बुद्भि में भ्रम अर्थात् कर्मों में अश्रद्बा उत्पन्न न करे। किन्तु स्वयं शास्त्र विहित समस्त कर्म भली-भाँति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवावे।
English Translation:- It is not a wise man’s concern or responsibility to fill the ignorant person’s mind with doubts, even if the latter is attached to his actions and constantly awaits results. However, he should encourafe these ignorant people just as any great man, by performing his own duties and actions unattached to them, as well as possible.
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