श्रीमद् भगवद् गीता तृतीय अध्याय कर्मयोग
नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन |
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रय: || १८ ||
naiva tasya kṛitenārtho nākṛiteneha kaśhchana
na chāsya sarva-bhūteṣhu kaśhchid artha-vyapāśhrayaḥ
Hindi Translation:- उस महापुरुष का इस विश्व में न तो कर्म करने से कोई प्रयोजन रहता है और न कर्मों के न करने से ही कोई प्रयोजन रहता है तथा सम्पूर्ण प्राणियों में भी इसका किञ्चिन्मात्र भी स्वार्थ का सम्बन्ध नहीं रहता।
English Translation:- This type of person has no use for actions (duties performed for the attainment of a certain goal), or inactions (duties performed without the expectation of any results). This type of person has reached a very high stage in the attainment of peace and detachment from all beings and things. He no longer selfishly depends on anybody or anything.
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