श्रीमद् भगवद् गीता तृतीय अध्याय कर्मयोग
इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविता: |
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव स: || १२ ||
iṣhṭān bhogān hi vo devā dāsyante yajña-bhāvitāḥ
tair dattān apradāyaibhyo yo bhuṅkte stena eva saḥ
Hindi Translation:- यज्ञ के द्वारा बढाये हुए देवता तुम लोगों को बिना मांगे ही इच्छित भोग निश्चय ही देते रहेंगे। इस प्रकार उन देवताओं के द्वारा दिये हुए भोगों को जो पुरुष उनको बिना दिये स्वयं भोगता है, वह चोर ही है।
English Translation:- Through the spirit of sacrifice of Yagya, the Deities grow and progress. As they grow, they will provide you with all the pleasures you desire. You should offer part of these pleasures to the Deities.
If one is granted pleasures by another person, the one who receives the pleasures should share some of those pleasures with the provider of those pleasures, or else he is as bad as a thief.
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