श्रीमद् भगवद् गीता द्वितीय अध्याय सांख्ययोग
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्पर: |
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || ६१ ||
tāni sarvāṇi sanyamya yukta āsīta mat-paraḥ
vaśhe hi yasyendriyāṇi tasya prajñā pratiṣhṭhitā
Hindi Translation:- इसलिये साधक को चाहिये कि वह उन सम्पूर्ण इन्द्रियों को वश में करके समाहितचित्त हुआ मेरे परायण होकर ध्यान में बैठे ; क्योंकि जिस पुरुष की इन्द्रियाँ वश में होती हैं, उसी की बुद्भि स्थिर हो जाती है।
English Translation:- The yogis or My divine devotees have gained or achieved self control; they have complete control of their senses and therefore they have also earned the power of constant wisdom. Their minds are constantly focussed and concentrated on ME, the Supreme Goal.
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