Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 59 | श्रीमद्भगवद्गीता

0
7655
Bhagavad Gita Chapter 2 image

श्रीमद् भगवद् गीता द्वितीय अध्याय सांख्ययोग

विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिन: |
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते || ५९
||

viṣhayā vinivartante nirāhārasya dehinaḥ
rasa-varjaṁ raso ’pyasya paraṁ dṛiṣhṭvā nivartate

Hindi Translation:- इन्द्रियों के द्वारा विषयों को ग्रहण न करने वाले पुरुष के भी केवल विषय तो निवृत हो जाते हैं, परन्तु उनमें रहने वाली आसक्त्ति निवृत नहीं होती । इस स्थिर प्रज्ञ पुरुष की तो आसक्त्ति भी परमात्मा का साक्षात्कार करके निवृत हो जाती है।

English Translation:- One who does not use his senses for the enjoyment of sensual objects can overcome and rise above sensual objects. However, he is not able to leave off the attachment to his senses. One who realizes God or the Supreme, gers rid of attachments to the senses as well.


Random Posts

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here