श्रीमद् भगवद् गीता द्वितीय अध्याय सांख्ययोग
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिण: |
जन्मबन्धविनिर्मुक्ता: पदं गच्छन्त्यनामयम् || ५१ ||
karma-jaṁ buddhi-yuktā hi phalaṁ tyaktvā manīṣhiṇaḥ
janma-bandha-vinirmuktāḥ padaṁ gachchhanty-anāmayam
Hindi Translation:- क्योंकि समबुद्भि से युक्त्त ज्ञानीजन कर्मों से उत्पन्न होने वाले फल को त्याग कर जन्मरूप बन्धन से मुक्त्त हो निर्विकार परम पद को प्राप्त हो जाते हैं।
English Translation:- Those individuals who have devoted their lives to the practice of KARMYOGA, they not only free themselves of the worries that accompany anticipation of results after performing certain actions, but also free themselves of all sins and achieve the supreme state of everlasting peace and happiness.
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