श्रीमद् भगवद् गीता द्वितीय अध्याय सांख्ययोग
दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय |
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणा: फलहेतव: || ४९ ||
dūreṇa hy-avaraṁ karma buddhi-yogād dhanañjaya
buddhau śharaṇam anvichchha kṛipaṇāḥ phala-hetavaḥ
Hindi Translation:- इस समत्वरूप बुद्भि योग से सकाम कर्म अत्यन्त ही निम्न श्रेणी का है। इसलिये हे धनञ्जय ! तू समबुद्भि में ही रक्षा का उपाय ढूंढ़ अर्थात् बुद्भियोग का ही आश्रय ग्रहण कर ; क्योंकि फल के हेतु बनने वाले अत्यन्त दीन हैं।
English Translation:- The Blessed Lord said unto ARJUNA -: When actions are performed by a person for any selfish motive or gain, that person shall always suffer and remain disappointed in life. Those, however, who practice KARMYOGA or the Yoga of even-mindedness, are free from any worries or disappointments for they do not care for the results of their actions and duties.
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